बुधवार, मई 20, 2009

पानी का रंग

बहुत दिनों से ,इस शहर में बारिश हुई नही थी

गंदे नाले सूख गए थे ,लोग शहर छोड़ के जा रहे थे

पानी की तलाश मैं भटकते -भटकते ,सीमाएं ख़त्म हो गयी
लोगों की भीड़ ,एक जलाशय के पास खड़ी थी
उसका पानी लाल रंग का था
जैसे इंसानों का खून इकठा किया गया हो ,
सभी उसको ध्यान से देखतें हैं
सभी को उसमें ,उनकी अपनी शक्ले दिखने लगी
जैसे वो खून उन्ही का है
फिर भी कई लोग उसे पी रहे थे ,
जो पी नही रहे थे ,वो वहीँ गिर -गिर के मर रहे थे




1 टिप्पणी:

भंगार ने कहा…

aap ne mujhay dekha aap ko jaan kar bhi acha laga