सोमवार, अगस्त 30, 2010

९१ कोजी होम

मीरा फिल्म का दौर था । शूटिंग शुरू हो चुकी थी .....पहला सेट राजकमल स्टूडियो

में लगा था । विद्दा सिन्हा ,और हेमा मालनी और डाक्टर लागू के बीच कुछ सीन थे

......हम लोगों के साथ एक नया सहायक जुड़ा ,जिसका नाम गौतम कपूर था पर

हम लोग उसे काका कह के बुलाते थे.......बहुत ही हसमुख था ...बहुत ही ज़िंदा दिल था

......हम लोगों के साथ विनोद नाम के सहायक थे ....उनकी और काका की बिलकुल नहीं

पटती ....काका क्लैप देता था ....और विनोद जी कनटीन्यूटी सीट लिखते थे ,अक्सर उन्हें

तंग करने के चक्कर में .....शाट नम्बर गलत लिखा दिया करता था ......

....विनोद जी बुरा नहीं मानते थे ...शाम को काका पार्टी देता .....जिसमें हम सहायक लोग

ही होते थे .....और काका ,फिर विनोद जी को तंग करने के चक्कर में कुछ ज्यादा ही पिला देता था

और फिर खुद ही अपनी कार से उन्हें उनके घर भी छोड़ने जाता ........

..............दुसरे दिन अगर शूटिंग नहीं है तो ....हम सब लोग आफिस आते थे .....और विनोद

जी के घर से खाना आता था ......हम चारो सहायक मिल कर खाते थे .....और काका अपना सारा

किया हुआ मजाक बता दिया करता था .....आज भी उस खाने का टेस्ट नहीं भूला हूँ ......विनोद जी

की पत्नी कलौंजी से भरा हुआ करेला भेजती थी .....और डोरे से पूरा करेला बंधा हुआ होता था

खाने से पहले करेले पे बंधा धागा खोलना आज तक नहीं भूला .........

.....बीता हुआ पल इतना खूबसूरत है .....जिसको मैं भूलना नहीं चाहता हूँ .........

.....इसी तरह की बहुत सारी यादें हैं .....जिनको मैं आप के साथ बाँट रहा हूँ .........

आज जब मैं पीछे मुडकर देखता हूँ ....बहुत कमाल क़ा लगता है ,जिन्दगी भी बड़ी कमाल की

है ....विनोद जी ....जो अपनी पत्नी को बहुत प्यार करते थे ......आज उनसे तलाक ले कर

अलग रहते हैं ......काका कपूर ने ....गुडगाँव में एक बहुत बड़ी फैक्टीरी खोल के अपना व्यापार कर

रहा है ...मैं सहारा चैनेल से जुड़ गया ...यन.चद्रा ही एक वह जो फिल्मों में हिट हुआ


.....और सहायक ....कहाँ -कहाँ बिखर गये नहीं पता ...




1 टिप्पणी:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आपके संस्मरण बहुत आनंद देते हैं...आप ज़रा विस्तार से लिखा कीजिये...छोटी छोटी पोस्ट्स से प्यास बुझती नहीं बढ़ जाती है...
नीरज