शुक्रवार, मई 15, 2009

उदासी का ए़क पल

इस पार मैं खड़ा था
बीच में तेज नदी की धार,
ख़ुद को मारती हुई तेजी से भाग रही ,
मुझे अकेला खड़ा देख कर ,
कुछ लहरे रुक गई ,
देखने लगी मुझे ,फिर पूछा?
क्यूँ उदास चुप-चाप खड़े हो
जवाब मेरे पास नही था
वजह भी मुझे नही मालूम अपनी उदासी की ,
बहुत देर तक लहरे वहीं किनारे रुकी रही ,
फिर गुस्से से ,
छपाक से ढेर सारा पानी मुझ पे फ़ेंक के चल दी

कोई टिप्पणी नहीं: