शुक्रवार, जून 12, 2009

विचार

विचारों की खाई में जा गिरा ,
जोर -जोर से चिल्ला रहा था मैं ,
उपर से कुछ लोग झाँकने लगे ,
सोच की रस्सी ,लपेट -लपेट कर लगे फेंकने ,
कोई भी रस्सी ,मुझ तक नही पहुंची ,
मुझे निकालने के लिए ..........,
आज भी मैं उसी विचारों की खाई में पडा ,
वक्त से समझोता करता हुआ ,
उपर देखता हुआ पडा हूँ ,
दो सो वर्ष बीत गए ,मैं ज़मीं में दबा ,
इस आश में ,कोई ज़हीन आ कर ,
इस सोच की सैलाब से ....निकालेगा मुझे कोई .....?

1 टिप्पणी:

रंजना ने कहा…

Vicharon ki duniyan se bahar wala koi nahi hota nikalne wala ...khud se hi khud ko bahar nikalna padta hai.