सोमवार, जुलाई 13, 2009

परछाईं का सौदा

परछाईं देख कर ,वो पहचान जाता मुझे ,
चिल्ला -चिल्ला कर ,मेरे नाम से बुलाने लगता ,
सड़क पर जब मैं चलती हूँ ,
इसी डर से कान में रुई पहनती हूँ ,
उसकी आशकी को जानती हूँ ,
मैंने अपनी परछाई,किसी और को बेच दी ,
अब बिना दर्द के घूमती हूँ ,
ना ... अब वो मिलता ,ना कोई शोर सुनाई देता ,
पर उदासी मेरे चेहरे पे पहले से ज्यादा झलकती है ,
इक दिन , वो सामने से आता हुआ मिल गया ,
मुझे देख कर खड़ा हो गया ,
अपनी झोली से ,मेरी परछाई निकली ,
देते हुए कहा...............,
अब अपनी आत्मा को मत बेचना ..........,

1 टिप्पणी:

vandana gupta ने कहा…

waah..........bahut hi gahri abhivyakti......zamane bhar ka dard undel diya hai.