अंगूर फ़िल्म के निर्माता ,जय सिंग को फ़िल्म के बारे में कुछ नहीं मालूम था ,किसी के बहकावे में आ गए
थे । और फ़िल्म बनाने आ गए .......यह तो अच्छा हुआ की फ़िल्म के निर्देशक गुलज़ार साहब थे ...और फ़िल्म बन कर
कम्प्लीट हुई और रिलीज हुई ......... । फ़िल्म का पहला दिन था ......एक गीत फिल्माया जा रहा था ....दीप्ति नवल
स्टेज पर खड़ी हो कर गा रही थी ......और हॉल में बैठे संजीव कुमार और देवेन्द्र वर्मा सुन रहें हैं ...दो सौ जूनियर आर्टिस्ट
हाल में बैठे हैं .........दीप्ती नवल के कुछ शाट लिए गए ........संजीव कुमार जी आए ही नही ......जूनियर आर्टिस्ट का पैकप
कर दिया गया ......कल फ़िर बुलाया गया .......फ़िर संजीव कुमार नही आए .....न आने की वजह थी ....दो दिन पहले ज्यादा
पी लेने से आखों के नीचे सूजन आ गई थी ..... इस लिए शूट करना मुश्किल था .........निर्माता के दामाद राजेन्द्र घबरा
गए ......निर्माता जय सिंह ने एक बात कही ......जब हमारी फैक्ट्री में मशीन की बेल्ट टूट जाती है तो हम क्या करते है ।
मजदूरों को बैठा कर मजदूरी देते हैं ना .....बस वही यहाँ भी समझो ....फ़िल्म की बेल्ट टूट गई है .......उस दिन निर्माता की
यह बात सुन कर लगा .......यही सही निर्माता हैं ......कुछ सालों बाद इन्होने गुलज़ार साहब केसाथ मिर्ज़ा गालिब सीरियल
भी बनाया था ...... फ़िर कुछ सालों बाद मेरे साथ भी एक सीरियल बनाया जिसका नम था .....देहलीज एक मर्यादा ....
यह भी सीरियल डी डी पर टेलीकास्ट हुआ ......इस सीरियल के दौरान कुछ अलग -अलग लोगों से मिले ......और सब गड़बड़
हो गया हमारा साथ उन्होंने छोड़ दिया .........
दामाद राजेन्द्र की डेथ हो गई .........और फ़िर जय सिंह मुम्बई छोड़ कर ....वापस अपने गावं पट्टी चले गए
एक अच्छे निर्माता का अंत हो गया ..........जिन लोगो से इतने अच्छे रिश्ते थे सब ख़तम हो गया ...अब गावं में अपनी खेती
बड़ी करते है .....
1 टिप्पणी:
यादो के झरोखे से यह संस्मरण बढिया लगी!
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