हम लोग तो रोज ही सफ़र करते हैं .....बहुत कम सफ़र होते हैं जो याद रहते हैं
....अभी हाल में ,मैंने एक सफ़र किया ....उसकी यादें लिख रहा हूँ ......तारीख
थी चार जून दो हजार दस .....मेरे साथ मेरी पत्नी भी थी .......
रात ....बारह बज के दस मिनट की ....महानगरी ट्रेन थी ....मुम्बई का
सी. यस. टी. स्टेशन ......करीब साढ़े ग्यारह बजे पहुँच गया मैं जब पहुंचा तो ...... पता चला
ट्रेन बीस घंटे लेट है .....कल शाम सात बजे जायेगी ....यह सुन कर ....मेरा प्रोग्राम की
हवा गुल हो गयी ......घर वापस आ गया ..... ।
इस सफ़र में ,एक शादी भी अटेंड करना था ......शादी छे जून की थी ....शादी को अटेंड
करना जरूरी था ......यह सोचा, विदाई में ही ...कम से कम पहुँच जायं .....कुछ ऐसा ही
सोच कर ...दुसरे दिन महानगरी ट्रेन पकड़ने पहुंचा .....आज वक्त पे छूट गयी ...शाम सात बजे।
मैंने सोचा ....इतनी लेट चलने वाली ट्रेन में ..... लोग कम होंगे .....पर ऐसा नहीं था..सभी थे
छे जून को शाम के सवा छे बजे ट्रेन अलाहाबाद पहुंची .... मुझे जौनपुर जाना था
समझ दारी इसी में थी ....ट्रेन छोड़ के बस से जौनपुर जाया जाय .....वैसे यह ट्रेन मिर्जापुर हो के
बनारस जाती ....फिर वहां से जौनपुर ...सात बजे एक सरकारी बस मिली .....अभी थोड़ी
दूर ही चली थी ....बस ड्राइवर ने कहा ....आगे चलना मुश्किल हो रहा है ...हेड लाईट
कमजोर है .......उसको ठीक करने के लिए .....प्रयाग के वर्क स्टेशन में जाना हो गा ......सभी
यात्री बहुत नाखुश थे ......सभी को अपने गंतव्य जल्दी ही पहुंचना था ,मैं भी ग्यारह बजे तक
पहुँच जाता ....हमारे समाज में शादी रात को होती है ....आखिर हेड लाईट ठीक हुई और बस
आगे चल दी ....ड्राइवर साहब उम्र दराज थे ...उनको मालूम था सभी यात्री जल्दी में है .....और बस
करीब साढ़े दस हम सभी लोग जौनपुर पहुँच गये .......
बरात में जा पहुंचे .....जय माल चल रहा था ........एक बात समझ में आयी
इच्छा का होना जरूरी है ....सभी लोग खुश थे ....फोन से ट्रेन के लेट होने की खबर दे दी थी ...
किसी को उम्मीद नहीं थी ....मैं शादी में पहुँच पाऊँगा ......
दुसरे दिन ,मैं अकेला ही .....अपने गाँव की तरफ चल दिया ....जौनपुर से
कुल दो घंटे क़ा रास्ता है ......कोई सीधी बस नहीं थी ....पहले बस से शाहगंज तक पहुंचना था
जौनपुर में बस मिल तो गयी ....बैठने की जगह भी ......गरमी इतनी नहीं थी जितना सोचा था
सड़क बहुत अच्छी थी .....धीरे -धीरे बस भरने लगी ......मेरे बगल एक औरत अपने बीमार
पोते को ले कर बैठी थी ....इतना कमजोर बच्चा ....जिसको देखते नहीं बन रहा था ...इतना कमजोर
था की ...उसके लिए रोना भी मुश्किल हो रहा था ....बस भरती जा रही थी ....बस में खड़ा होना
मुश्किल हो रहा था .....लेकिन कंडक्टर भरता ही जा रहा था ....करीब ग्यारह बजे शाहगंज जा पहुंचे
........वहां से एक जीप में बैठा ....आगे की सीट पे पांच लोग बैठ गये ......मैं इस तरह बैठा था ,जैसे
किसीने कपडे को निचोड़ दिया हो .......रास्ता बहुत खराब था मालीपुर तक पहुँचने में एक घंटा
लग गया ....माली पुर उतर कर दूसरी जीप पकड़ी .....इस बार मैंने जीप चालक से कहा .....दो आदमी क़ा पैसा मैं दे दूंगा ....तुम किसी और को नहीं बैठाओ गे ,वह मान गया ......
मालीपुर से जलालपुर तक जाना था ......आराम से मैं जलालपुर तक पहुँच गया ....भूख लग गयी
थी ......एक मिठाई की दूकान पर पहुंचा ....समोसा लिया .....उसकी चटनी इतनी अच्छी थी
की दो बार उससे और चटनी ली ......बुआ के लिए मिठाई ली ......और दूसरी जीप की तरफ चला
...जीप वाला कहने लगा हजपुरा की सवारी नहीं लेगा ...दोपहर क़ा समय था .....मैंने उससे से
कहा ....अकबरपुर तक पैसा ले लो ......मान गया .....बीस रुपया .....मेरा गाँव आधे दूरी पे पड़ता है
दस रुपया किराया था .....एक बात समझ में आयी ....गाँव के लोग बहुत जल्दी आमीर होना चाहते हैं
......दोपहर क़ा एक बज रहा था ....सडक पे उतर गया ....और कच्चे रस्ते से अपने घर की तरफ चल
दिया ......किराहिया से होता हुआ .......किराहिया एक छोटा सा तलाब है ....बचपन में इसी में
नहाया करता था ....तैरना भीd इसी में सीखा था....पश्चिम की तरफ मेरे घर क़ा दलान है .....मुझे
मालूम था ...घर में मेरी बुआ होंगी जो करीब सत्तर वर्ष की हैं .....उनको मालूम था .....मैं आज घर
आने वाला हूँ.....
1 टिप्पणी:
अच्छी प्रस्तुति, आगे की कथा-----
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