शुक्रवार, अप्रैल 15, 2011

९१ कोजी होम

बहुत याद करने पे ....वह याद आते हैं ।

क्यों मैं सब कुछ भूल गया ....हालात ?

औलाद क़ा सुख पोते -पोतिओं क़ा प्यार

सब कुछ धुल गया ,

बरसात में पत्तों की धूल की तरह .....

सच किसी ने .... कहा है

उम्र क़ा नशा कुछ पागल ही होता है

तब ढेर सारे गलत ....फैसले हो जाते हैं

सजा बुढापे में जिसकी मिलती है ......

सच कहता हूँ ....बाल -बाल मैं बच गया ।

कहानी कुछ इस तरह थी ..........

वह मुझे ठगना चाहती थी ...आधा मैं ठगा जा चुका था

बस पिता की मौत ने मुझे बचा दिया .......

वरना एक कटघरे में होता .....जहां खडा बहुत सारे सवालों के जवाब देता रहता ।

मेरी जगह मेरा दोस्त फंस गया ........आज उसका हाल देख के ...

लिख पाया इस कहानी को ................................

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