गुरुवार, जून 26, 2014

कुछ वक्त से ही  पहचान थी उनसे
पर बेझिझक अपनी कहानी बताती
हर बात पे मेरी हुंकारी की मोहर लगवाती


कुछ समय बाद उनकी एक किताब निकली
हर घटना पे मेरी रजामंदी की तक़ीद मिली
मुझे गुनहगार समझ के सजाय मौत मिली


अब जब भी वह मिली
बेवकूफ समझ के दूर सरक लेती
इश्क में  गल्तियां यह सभी से होती



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