उसे सब कुछ मालूम था ,वह ऐसा ही कुछ कहता था। एक शाम मैं के करीब बैठा था ,और उसे सुन रहा था।
लगातार एक घंटे वह बोलता रहा ,सुनता रहा मैं को वह ,वह उम्र में बहुत छोटा था और मैं उम्र में बहुत बड़ा था !
मैं की कहानी के बहुत से रंग थे ,हर रंग बहुत खिला हुआ सा था ,एक बात थी, मैं, वह, को समझा -बुझा के ही आगे
की कहानी कहता था।
बात उस समय की है ,जब मैं जवान था मैं का नाम मुरली था । वह सोच से,बहुत सीधा था।
किसी के बारे में ,हमेशा पज़टिव सोच रखता था , कभी भी ऊँची आवाज में बोलते नहीं सुना , सब उसे बहुत सीधा कहते
थे। एक छोटी सी खोली थी ,जिसमे वह और अभी -अभी गाँव से आईु पत्नी साथ रहते थे। सुबह आफिस जाते समय पत्नी
को घर के अंदर बंद कर के जाता था ,वजह मुंबई शहर होने का ,बाहर से ताला लगा बार बार खींच के जरूर देखता था।
मैं जो था ,मतलब मुरली धर चौबे ,जो थे वह मथुरा के निवासी थे ,इनके पिता पन्डा थे ,लोगो को कृष्ण के बारे में बताते
उनके चमत्कार बता के वह अपना घर चलाते थे। मुरली उनकी इकौलती औलाद थी ,उसकी पढ़ाई -लिखाई यही मथुरा में हुई थी
पढ़ने में मुरली बहुत तेज था ,यही वजह थी पिता ने मुरली को अपने पंडिताई में नहीं लगाया ,और उसे पूरी छूटपढ़ने की दी।
समाज के कुछ कानून थे जिन्हें मानना ही पड़ता था ,जैसे मुरली की शादी जो बचपन में , तै हो चुकी थी , उसे करने का
वक्त आ गया था ,सो कर दिया गया। पढ़ -लिख के जब मुरली की नौकरी टाइम्स ऑफ़ इंडिया में क्राइम रिपोर्टर बतौर लग गयी।
अब बापू बार -बार यही चिठ्ठी में लिखते हैं। अपनी पत्नी को ले जावो ,फिर एक दिन सुबह -सुबह दरवाजे पे खट -खट होता है मुरली
ने दरवाजा खोला ,सामने अपने साले को देख के बोल पड़ा , अरे गोविन्द यहाँ कैसे ? ,दीदी को ले कर आया हूँ ! दीदी को क्यों ? मुझे
बापू ने कहा इसे , इसके कान्हा के पास पहुँचा के आ ,और मैं दीदी को ले कर आ गया। मुरली को अब जा के समझ आया उसकी
पत्नी उसके पास आ गयी है। कुछ सोचते हुए ,मुरली ने पूछा अरे गोविन्द तुम्हारी दीदी है कहाँ ? वह टैक्सी ,सड़क पे खड़ी है उसी में
बैठी है। अकेले छोड़ के क्यों आ गए ? क्या करता ,इस गली में थोड़े आ सकती थी। अच्छा चलो -चलो ,मुरली सोचने लगा ,वह पहली
बार अपनी घरवाली को देख रहा था ,कैसी हो गी ? दोनों टैक्सी के पास पहुँचे ,मुरली ने दूर से ही टैक्सी के अंदर देखना चाहा , घूँघट में
एक औरत बैठी थी। टैक्सी वाले ने खुद ही मुरली की पत्नी को कहा बिटिया तुम्हारे घरवाले आ रहे है ,तभी राधा ने घूँघट किया था।
टैक्सी का बिल मुरली ने दिया , गोविन्द ने समान निकाला और अपनी बहन को गाड़ी से बाहर निकलने को कहा ,दीदी बाहर आ
जावो। गोविंद थोड़ा समान मुझे दे दो ,नहीं जीजा ,आप दीदी को ले कर आवो गोविन्द ने कहा। दीदी टैक्सी से बाहर निकल के मुरली के
पैर छुए ,मुरली एक पल को सकपका गया ,और बोल पड़ा नहीं नहीं रहने दो ,उसने पत्नी राधा को बचपन में एक बार देखा था ,अब कैसी होगी
उसे नहीं मालूम है। मुरली के पीछे -पीछे मीरा आने लगी ,खोली तक आने में आस -पास के लोगों को पता चल गया ,मुरली शादी -शुदा है
इस छोटी सी चाल में ,एक कमरा था ,और उसी से लगा किचन था ,और उसी के बगल एक टॉयलेट था। मीरा ने अभी तक घूँघट
किया हुआ था , मुरली ने अभी तक मीरा की शक्ल तक नहीं देख पाया था उसके गोरे -गोरे हाथों को देख के उसे लगा ,गोरी तो बहुत है ,मुरली
ने चाय का पानी रख दिया ,पास रखी दो कुर्सिओं पे गोविंद और राधा बैठ गए। मुरली चाय बनाते -बनाते अपनी पत्नी को देख लेता था ,राधा ने
अपना घूँघट काम नहीं किया था अभी तक ,ब्रज यह रिवाज है पत्नियाँ हमेसा पति के समाने घूँघट रखती हैं।
आज मुरली आफिस नहीं गया ,अपने साले और पत्नी को यहाँ के बारे में बताया, सुबह उठ के पानी भरना होगा ,दूध लेने के लिए सड़क के
बूथ तक जाना होगा ,दिन का खाना बनाने को लेकर सब कुछ बताया, उस वक्त स्टोब पे खाना बनाया जाता था। सब से बड़ी दिक्कत शाम को हुई ,एक
ही कमरा था, उसी में तीनों को सोना था ,कैसे भी रात कटी सुबह मुरली जल्दी उठ के तैयार हो गया और आफिस को चल दिया ,बहुत कुछ भाई -बहन
को समझा गया। मुरली के जाने बाद ही राधा ने घूँघट काम किया ,गोविंद ने कहा दीदी मुझे यहाँ से चले जाना चाहिए ,यहाँ हम तीनो का रहना बहुत
मुश्किल है , क्यों मुश्किल है ? रात में क्या नहीं सोये थे और कैसे सोना चाहिए ,बापू से यही कह के आये थे की मैं राधा का ख्याल रखूँगा ,फिर
क्यों जा रहे हो ?
शाम होते -होते भाई -बहन में ढेर सारी बात हुई ,करीब रात के आठ बजे मुरली घर में आया, फिर राधा ने घूँघट कर लिया ,उसको देखा ,मुस्कराते हुए
वहीं बैठ गया. गोविन्द पूछता है जीजू रोज ही इसी वक्त आते हो ,फिर तो दीदी पूरा बोर हो जाएगी ,फिर अपने साथ ऑफिस ले जाऊंगा ,यह सुन के हंस पड़ता
है , पास खडी राधा भी हँस पड़ती है ,दीदी को कहो चाय पिला दे , दीदी को स्टोप जलाना नहीं आता ,हमने ने तो दिन में इसी चक्कर में खाना भी नहीं खाया ,चलो
तुम लोगो को स्टोप जलाना सीखा देता हूँ ,राधा किचन में चली गयी ,मुरली ने गोविन्द से कहा "यार अपनी दीदी से कहो मेरे समाने घूँघट ना किया करे ,तभी राधा आ जाती है ,मुरली को पानी देती है
दीदी ,भैया कह रहे थे क्यों घूँघट करती हो इनके सामने ? वह हँस कर चली जाती है। फिर दिन में एक घटित घटना के बारे में बताते हैं , क्या हुआ मुझे स्टोप
जलाना नहीं आता था ,भूख भी बहुत लगी थी ,वह पेड़े जो आप के लिए लाये थे ,हम लोगो ने वही खाया,और भूख इतनी थी कि एक एक कर के सभी पेड़े खा गए , मतलब
पूरा डब्बा ही चट कर गए।
शाम का खाना बना , सभी ने मिल के खाया ,रात में सिर्फ सोने वाली दिक्कत थी. तीनो लोगो को एक ही कमरे सोना जो पड़ता था ,मुरली थोड़ा सा
बाहर टहलने गया ,उस एजेंट से जा मिला ,बड़े घर की बात करने लगा ,एजेंट ने बताया किराया थोड़ा ज्यादा देना पड़ेगा। ठीक है दिखा दो सन्डे को। घर पहुंचा
सालने ने पूछ ही लिया ,कहाँ चले गए थे ? वह घर का मालिक मिल गया था कहने लगा ,कैसे तीनो लोग एक कमरे में रहते हो ? जीजू आप ने क्या कहा ? मैं क्या कहता
चुप रहा ,फिर उसी ने कहा ,मैं देखता हूँ बड़ा घर । लेकिन क्यों , मैं तो चला जाऊँगा कुछ दिनों में। वह सब तो ठीक है ,लेकिन तुम्हारी दीदी को तकलीफ हो
जाती है। तभी राधा बोल पड़ी मुझे क्यों तकलीफ होगी ,गोविन्द बोल पड़ता है ,क्या दीदी सुबह क्या कह रही थी ,जीजू के साथ इस तरह सोना ठीक नहीं लगता है ,जीजू
मन की बात समझ जाते हैं , एक काम करते हैं ,मैं बाहर दरवाजे के सामने सो जाता हूँ ,घर की चौकीदारी जाएगी और सभी लोग आराम से सो जायेंगे ,तभी राधा बोल पड़ी किचन
में इतनी जगह मैं सो जाउंगी और आप लोग कमरे में। दीदी मुझे लग रहा है, मुझे चलेजाना चाहिए मथुरा बापू के पास ,फिर ऐसा कर मुझे भी अपने साथ लेते चल ,मैं क्या
करूंगी अकेले यहां ? राधा ने कहा। यह सुन मुरली चुप एकदम चुप ,यह सुन के गोविन्द भी खामोश।
एक सप्ताह रहने के बाद गोविन्द जाने को तैयार है ,वापसी टिकट गोविन्द मथुरा से ही ले के आया था, यह बात राधा को नहीं मालूम थी। राधा बहुत रोई अब भी उसके सर का
घूँघट थोड़ा सा काम हुआ था लेकिन तब भी चेहरा नहीं दिखता था। गोविन्द ने बहन के पैर छुए ,मुरली छोड़ने जा रहा था ,और पत्नी को कहा उधर से आफिस चला जाऊँगा ,और सुनो
कोई भी आये तो घर मत खोलना मैं शाम को आऊंगा। मैं बोलूंगा खोलो दरवाजा तब खोलना ,मेरी आवाज पहचान के ,समझ गयी ना। उसने घूँघट में से ही हाँ कहा ,राधा घर में आई
और अंदर से बंद कर दिया।
दोपहर का वक्त था ,राधा जमीन पे लेटी हुई थी , दरवाज़े पे किसी ने खटखटाया ,राधा उठी अभी तो दो बजे थे ,राधा ने अपनी घड़ी देख के अन्दाजा किया ,यह तो हो नहीं हो सकते हैं
इन्होने ने शाम में आने की बात की थी ,अभी कैसे आ सकते हैं ? फिर भी राधा उठ के बैठ गयी ,दरवाज़े की तरफ देखने लगी ,खटखट हो रहा था। बाहर छक्के थे, जो जोर -जोर से अपनी भाषा
में कह रहे थे ,नई -नई दुल्हन लाया ,हमें कुछ दिए मजे मार रहा है ,हाय हाय हमी से नखरा खोल भी दे मेहरिया की शक्ल दिखा हमें। राधा डरी सी चुप चाप अंदर बैठी ही रही ,और अपने कान्हा
से कह रही थी ,इनको भगा यहां से ,कुछ देर तक छक्के हल्ला मचाते रहे फिर खुद ब खुद चले गए।
राधा दिन भर आज भूखी ही बैठी रही न कुछ खाया न खुछ पिया ,बार -बार घड़ी ही देखे जा रही थी। रात का आठ बजा ,दरवाजे से लग के खड़ी हो गयी ,कब खट खट हो और वह जा के दरवाज़ा खोले
कुछ देर इन्तजार के बाद ,दरवाजा नाक हुआ ,राधा दरवाजे के पास कान लगा के सुनने लगी ,तभी बाहर से आवाज आयी , मैं हूँ खोल दो ,मैं हूँ …………। यह सुन के राधा ने दरवाजा
खोला ,सामने मुरली था , अंदर आया और पास रखी कुर्सी पे बैठ गया। गोविंद को ट्रेन पे बिठला दिया था और बीस रूपये दे दिया था ,राधा पानी ले कर आयी। पानी लेते -लेते उसके हाथों को पकड़
लिया ,और बहाने से कहने लगा यह तुम्हारा हाथ कैसे जल गया ? हाथ पकडे यह देखो ,यह देखो। कहाँ ? यह देखो मुरली राधा के बिलकुल करीब आ गया , झूठ -झूठ आप मुझे …………… . सच
कह रहा हूँ ,यह देखो मुरली ने उसको और करीब कर लिया। लजा गयी राधा ,तुम्हे नहीं दिख रहा है ?वह हंसने लगी , क्या हुआ ? क्या हुआ ?बताओ बताओ ना। मैंने सुबह से कुछ नहीं बनाया
सुबह की बची दो पूड़ियाँ खा लिया था ,लेकिन घबरा के कहने लगी दिन में कुछ छक्के आ गए थे ,ज़िद्द करने लगे ,और कहने लगे ,खूब मजा मार रहे हो ,उनको कैसे मालूम ? क्या ,हम कहाँ मजा
मार रहे हैं ,कितनी मुश्किल से सो रहे थे ,सही है ना। राधा पहली बार जी खोल के हँसी …………………।
मुरली उसके बगल बैठा ,राधा को समझा रहा था ,मैं सब समझ गयी ,यह सब करने से अच्छा है ,तुम बाहर से ताला लगा के जावो ,बात ख़त्म मैं अंदर से बंद रखूँगी ,जब तक तुम खोलने
के लिए नहीं कहोगे ,तब तक मैं अंदर से नहीं खोलूंगी। क्या बात है ,बहुत समझदार हो। अच्छा यह ,घूँघट मेरे सामने मत किया करो ,सर खोल के रहूँ , नहीं यह कहने का मतलब नहीं है , मैं जैसी हूँ
ठीक हूँ। मुरली को राधा का मिज़ाज समझ में आ गया ,बात को बदलते हुए कहने लगा , खाने में कुछ मिलेगा ? राधा ने खुली आँखों से मुरली को देखा ,पूछा क्या खायेंगे ? जैसे कह रही हो तुम्हे ,
खाने की भूख नहीं है ,मेरी भूख हो मुझे पाने की भूख है , मैं सोचने लगा यह पत्नियाँ अन्दर की बात कैसे समझ लेती हैं ? वह मुझे देखती रही ,मैं खड़ा हुआ ,और उसको गले लगा लिया ,आते थे और जी
भर के प्यार किया ,हम दोनों पसीने तर -बतर थे। हम दोनों देर रात तक लेटे रहे ,वह मुझसे पूछती रही ,कभी हमें याद भी नहीं किया ,आप ने ?भूल गए थे कोई वीबी भी है ,जो तुम्हारे इंतजार
में ,मथुरा में पड़ी है ,मैं कान्हा वाली राधा नहीं हूँ ,जिसने उन्हें द्वारिका जाने दिया और साथ नहीं गयी। अच्छा यह बताओ ,कुछ भूख अभी है ?यह कह के हँस पड़ी ...................
राधा ने पूरा घर अब सभाल लिया था, एक बच्चा भी होने वाला था। राधा देखने में सुन्दर बहुत थी ,रंग गोरा था ,कद अफगानी लड़किओं जैसा , उसकी सुंदरता ने सारे मोहल्ले
को अपनी मुठ्ठी में कर लिया था ,नवजवान एक बार दिन में उसके दर्शन जरूर कर लेते ,यह बात राधा को भी मालूम थी। घर बैठे अपना सारा काम करा लेती थी ,औरते भी उसकी दोस्त
बन गयी थी। मुरली की भी खूब दोस्ती लोगो से हो गयी थी ,हर कोई उसके बहुत करीब आना चाहता था। लोग डरते भी थे ,वह इस लिए कि वह क्राइम रिपोर्टर जो थी। अक्सर वह बदमाशो
से उसकी मुलाक़ात होती थी। अक्सर पुलिस वाले भी उससे मिलने आते थे।
एक दिन मुरली आफिस से लौट के ही नहीं आया ,सुबह तक राधा जागती रही ,कोई खबर नहीं मिली मुरली की ,अब राधा को चिन्ता होने लगी। मोबाईल का जमाना नहीं था।
कैसे पता करे ,यही सब सोच रही थी ,तभी मुरली घर में आया ,उसके चेहरे से लग रहा था रात भर सोया नहीं। राधा के मन में गुस्सा भी और आने की ख़ुशी भी थी ,राधा ने कुछ पूछा
नहीं जल्दी से चाय बना के ले आयी ,मुरली ने चाय ली और पीना शुरू किया ,अभी तक राधा ने कुछ पूछा भी नहीं। मुरली ने चाय पूरी ख़त्म की ,खुद ही कहना शुरू किया ,बहुत मुसबित में
फँस गया था ,पिछले हफ्ते मैंने जिस के बारे में लिखा था ,वह मुझे जबदस्ती अपनी कार में बिठा के खंडाला ले के गया था। वह नंबर दो का आदमी था , सब के पास पिस्तौल थी ,वह मुझे
किसी समय गोली से मार सकता था ,फिर मैंने उसको सच्चाई बतलाई ,तुम्हारे बारे में छापने के लिए तुम्हारे भाई ने मुझसे कहा था। और यह भी कहा इससे भाई का रूतबा बढ़ेगा ,और इसका मुझे
दस हजार रूपये भी दिए गए ,यकीन ना हो अपने भाई से अभी पूछ लो ?
जब भाई को सच्चाई पता चली ,तब उन्होंने मुझसे एक बात कही ,तुम मेरे बारे में लिखा करो, हर खबर का दस मिलेगा खुस हुआ तो डबल हो जाएगा ,पर छपने से पहले
एक बार मुझे सुनाना पडेगा , बस हमसे गद्दारी मत करना , इस मुंबई शहर में तुम्हे कोई छू भी नहीं सकता , सुरेश जा छोड़ के इसे आ, इसके इलाके के लड़कों को कह दे ,यह मेरा
छोटा भाई है।
इस तरह मैं बच आया ,इनकी दोस्ती भी अच्छी नहीं और ना दुश्मनी
मैं
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