फ़िल्म खुश्बू थी ,इस फ़िल्म के निर्माता "जितेन्द्र साहब थे ,मोहन स्टूडियो में शूटिंग चल रही थी अब मै क्लैप देने लगा था ,जीतू साहब से अच्छी पहचान हो गई थी shooting देर रात तक चलती रही ,एक बजे शूटिंग पैकअप हुई ,सभी लोग अपने अपने घरों को जा रहे थे ,कुछ देर बाद स्टूडियो खाली हो गया ,जीतू साहब ने मुझे अकेले खड़ा देखा ,कार में बैठते हुए मुझे बुलाया ,और पूछा " कहाँ रहते हो ? उस समय में शिवाजी पार्क पे रोड नंबर पाँच पे रहता था और जीतू साहब उस समय कोलाबा में रहते थे
उस समय उनके पास इम्पाला कार , जो लाल रंग की थी ,और उनका ड्राईवर शलीम था वो महिम में कहीं रहता था ,जीतू साहब ने कहा ,अरे शलीम तुम तो यही महिम में रहते हो शलीम उतर गया जीतू साहब ख़ुद गाड़ी चलाने लगे ,गाड़ी कुछ दूर
ही चली थी ,के बंद हो गई ,रात के दो बज रहे थे दोनों लोग मिल के धका देने लगे ,सामने पेट्रोल पम्प दिखा ,वहां पहुँच गए,वहाँ के लोग जीतू साहब को देख कर
पहचान गए ,पेट्रोल भराया ,एक चीज देखी जीतू साहब ,जरा भी गुस्सा नही आया उन्होंने मुझे भी मेरे कमरे पे छोड़ा
2 टिप्पणियां:
अच्छा लगा आपका विवरण पढकर।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
aise umda udaahran vahi dete hain jinka kad to bada hota hi hai dil bhi chhota nahin hota...............
aise sansmaran prerna dete hain
badhaai !.
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