जब शूटिंग नही होती तब हमें ,गुलज़ार साहब के आफिश में आना पड़ता था |इस का पता था ,९१ कोजी होम ,हमें दस बजे अफ़िश हर हल में पहुंचना होता था |मुझे मिला कर चार और सहायक थे ,मेराज ,राज .यन सिप्पी ,यन चन्द्रा, सजीव कपूर ,फ़िर मैं राम लाल {यह मेरा असली नाम नहीं है } इस नाम से सिर्फ़ गुलज़ार साहब बुलाते हैं यह नाम उन्होंने कैसे दिया ,यह ए़क अलग वाक्या है |हम पांचो सहायक ,वही ऑफिस में शाम पॉँच बजे तक बैठते थे ,अगली शूटिंग जो होने वाली होती थी ,उस पर काम करते थे |
गुलज़ार साहब अपने रूम में रहते थे , दिन भर ऐक्टर लोगो का आना -जाना लगा रहता
था ,यहीं से एक शौक,जो हीरो को देखने का था ,ख़त्म हुआ |
दिन में गुलज़ार साहब खाना नही खाते थे ,हमसभी लोग भी ,क्या करते ,कुछ महीनो में ,शुमार हो गया ,दोपहर में ना खाने की आदत , आज तक वैसा ही चल रहा है
हमारे आफिस एक चपरासी था ,वो दोपहर का खाना ले कर आता था ,जिसको जयादा
भूख होती ,उस से एक रोटी मांग कर खा लेता था |उस समय हम सभी लोग ,शादी -शुदा
नही थे ,और दूसरी बात ,गुरु जैसा बनना हर कोई कहता था |
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