अचानक फ़िल्म की शूटिंग हो रहीथी मोहन स्टूडियो " में मेरा पहला दिन शूटिंग में था , मैं पांचवा सहायक था ,मुझे सिर्फ़ ,बस देखना था मैं चुप-चाप शूटिंग देखता रहा ,मेरी पहचान ,मेराज से हुई ,आपने से लगे ,इस पराये शहर में ,वो गुलज़ार साहब के
मुख्य सहायक थे उन्होंने मुझे फिल्मी अदब सिखाया ,औ़र बताया इस महौल में कैसे
आपने को ,निर्देशक के करीब रखें उनको आपनी फ़िल्म की पढाई के बारे में बताया वह
कुछ नही बोले मुझे पता चल गया ,यहाँ मेरी पढ़ाई काम नही आने वाली ,मैं वही कुछ सीखने लगा अक्सर शूटिंग खत्म होने पर गुलज़ार साहब मुझको अपनी कार में
लिफ्ट दे दिया करते थे ,मुझे नही मालूम था इसी वजह से गुलजार साहब के और सहायक
मुझ से कसर करने लगे
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