"दिल फ़ेंक कह के बुलाते हैं लोग मुझको
शक्लन , मैं हीरो जैसा लगता हूँ
नाम जो माँ ने दिया था ,
वो कब का खो गया ,
ए़क अजीब सा नाम,मेरे माथे पे चिपक गया
मेरी शादी हो गई ,बच्चे दस -बारह बर्ष के हो गए
आज भी दोस्त मुझे "दिल फेंक " कह के बुलाते हैं
मेरी पत्नी आज भी मुझे शक की नजर से देखती है
मेरे बेटों के बेटे हो गए, पर आज भी मेरी पत्नी शक गया नही
उसे इस बात का एहसास नही ,
मैं अस्सी बरस में पत्थर तो फ़ेंक नही पाता
दिल कहाँ से फेंकूंगा ,
आखों का वो हाल है हाथ अपने दीखते नही ,
कोई और क्या दिखे गा
नाम का बड़ा असर होता है ,ऐसा कहा जाता
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