मैं उस वक्त पूना में अपनी पढाई कर रहा था ," मैंने अपने दोस्तों को बताया , मै गुलजार से मिला था तब तक गुलजारजी ने दो फ़िल्म , मेरे अपने , और कोशिश बना चुके थे हम दोस्तों में यही चर्चा का विषय होता था ,कौन किसे मिला , मेरे पास गुलजारजी का टापिक था इस वजह से कई सीनियर लड़के मेरे दोस्त बन
गए वक़त गुजरते टाइम नही लगता , मै अपनी तीन साल की पढ़ाई कर के बाम्बे आ गया
गुलज़ार जी ने मुझे अपने पास पांचवा असिस्टेंट रख लिया ,कोजिहोम में उनका आफिश था
और वहीँ रहते भी थे ,मैं पांचवा असिस्टेंट था ,फ़िल्म थी " अचानक " पांचवे असिस्टेंट को कुछ नही मिलता था
महिना बीत गया , पता नही चला ,सब को शैलिरी मिल गई दुसरे दिन कोजिहोम पहुँचा ,गुलज़ार जी मुझे अपने कमरे मे बुलाया ,मुझे समझाया ,मै सिर्फ़ चार सहायक रख सकता हूँ , मुझे डर लगा मेरी नौकरी गई
कुछ बोलना चाह रहा था ,तभी गुलज़ार जी के दोस्त भूसन जी आ गए , मेरी बात वहीं रुक गई
मै कुछ और सोचने लगा , पिता जी की इक्छा थी , मैं टी वी ज्वाइन कर लूँ ,उस वक्त यह एक सरकारी नौकरी थी चारसो रूपया महिना मिलता था ,मैं क्या करूँ ? इसी उधेड़ - बुन मे बैठा रहा ,भूसन्न जी उठ कर चले
गए कुछ सोच के गुलज़ार जी ने कहा ,तुम मेरे पास काम करते हो ,तुम्हे कुछ मिलना चाहिये
मैं चुप रहा ,मैं तुम्हें डेढ़ सौ रूपया दूंगा सन ७३ जमाना था ,आठ आने का एक बड़ा पाव मिलता था
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