बुधवार, मई 27, 2009

सासें

साँस को साँस से जोड़ के देखा
एक अधुरा सपना दिखा ,जो बरसों पहले
दिन के उजाले में देखा था ,
एक आदमी ,अपना सर ,अपने हाथों में लिए चला जा रहा था
उसका सर उसकी हथेली में पडा मुस्करा रहा था
और कोई गीत गुन गुना रहा था ,
खुशी में ,हथेली से सरक के गिर पडा ,
भूल से ,धड आगे निकल गया ,
सर वहीं पडा ,च्चिलाता रहा च्चिलाता रहा ,
धड के कान तो था नही ,जो सुनता
आज भी वह सर वहीँ पड़ा है
धड वगैर सर के घूमता फ़िर रहा है
धड की मंजिल अब उसका सर है
देखो उसका सर कब मिलता है ,या फ़िर किसी शिव की किरपा मिल जाय

1 टिप्पणी:

रंजना ने कहा…

vichitra kalapna hai...

achcha prayaas.