सोमवार, जून 01, 2009

रात का सफर

रात भर तारों को तोड़ता रहा ,
फ़िर उन्हें एक चादर में लपेट कर,
धोबी घाट पे ले आया ,रेह में भिगो -भिगो कर ,
सुबह तक धोता रहा ,
एक भीड़ ने ,सुबह मुझे घेर रखा था ,
क्यों ,
एक सूट-बूट वाला साहब ,बच्चों की चडडियाँ धो रहा है

2 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

वाह बिल्कुल नया अन्दाज़ नये तेवर और आज का सच

भंगार ने कहा…

aacha laga aap ne meri soch ko dekha.