गुरुवार, जून 11, 2009

मुनीम

मुनीम को सेठ समझ कर , लोग झुक कर सलाम करतें हैं ,


मुनीम पैसे का खेल खूब जानता है ,


मालूम है उसको ,कौन सा सिक्का ,


कितना तेज भगेगा ,


मुनीम की बात का वजन देख कर ,


उसका पैसा ,उसका अपना नही लगता ,


उसके पैसे को मुनीम ,अपना कह के चला लेता है ,


मुनीम का बाजार में बडा रोओब है ,


उधार की दुकान खूब चला रखी है ,


एक दिन सेठ ने अपने को दिवालिया बता दिया ,


और यह हवा बजार में उड़ा दी , मुनीम ने उससे दगा किया ,


मुनीम दूसरे दिन घर की छत से ,लटका हुआ मिला ,


सेठ ने उसी शाम एक शहर बडी सी पार्टी दी ,



shahar के बडे से बड़े ,सूद खोर इकठा थे


सभी सेठ की पीठ थपथपा रहे थे ,


धंधे में पैसे वाले की जीत बता रहे थे .........

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