मुनीम को सेठ समझ कर , लोग झुक कर सलाम करतें हैं ,
मुनीम पैसे का खेल खूब जानता है ,
मालूम है उसको ,कौन सा सिक्का ,
कितना तेज भगेगा ,
मुनीम की बात का वजन देख कर ,
उसका पैसा ,उसका अपना नही लगता ,
उसके पैसे को मुनीम ,अपना कह के चला लेता है ,
मुनीम का बाजार में बडा रोओब है ,
उधार की दुकान खूब चला रखी है ,
एक दिन सेठ ने अपने को दिवालिया बता दिया ,
और यह हवा बजार में उड़ा दी , मुनीम ने उससे दगा किया ,
मुनीम दूसरे दिन घर की छत से ,लटका हुआ मिला ,
सेठ ने उसी शाम एक शहर बडी सी पार्टी दी ,
shahar के बडे से बड़े ,सूद खोर इकठा थे
सभी सेठ की पीठ थपथपा रहे थे ,
धंधे में पैसे वाले की जीत बता रहे थे .........
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