बुधवार, जून 10, 2009

मन्दिर

सोच का मन्दिर बना कर ,मूर्ती शिव की लगा कर ,
सुबह शाम पूजा प्रार्थना चलने लगी ,
एक दिन सुबह -सुबह ,नींद में भगवान आ गए ,
और लगे पूछने ,बता तेरी इच्छा क्या है ,
तू चाहता क्या है ?
यह सुन कर आँख खुल गयी ,तो पाया सच में ,
शिव सामने खडें ,मुझे घूर रहे हैं ,
मैंने घबरा के आँख बंद कर ली ,
और फ़िर वही स्वपन आखों में जड़ गया ,
बोले मांगो तेरी इच्छा क्या है ?
अब मांगने के लिये मेरे पास ,कुछ नही था ,
सूखी जुबान तलुए से जा लगी ,
मुहँ खुला का खुला रह गया ,
आज का पल ....... आखरी था ..... मेरे जीवन का ...

2 टिप्‍पणियां:

बसंत आर्य ने कहा…

ये कविता है सिर्फ या सच्चा बयान .

भंगार ने कहा…

basantji sach sb kuch hai jo hai jo ho rha hai is sansar men kuch jhunt nhi