शुक्रवार, जून 19, 2009

गंगा

सभी मन का सुख चाहते हैं ,
उसी की तलाश में ,
जंगलो ,पहाडों ,मंदिरों में घूमते हैं ,
मै भी इधर -उधर बहुत भागा ,
कहीं शान्ती नही मिली ,
एक दिन गंगा में ,डुबकी लगा के ,
तलाशने लगा मन का आनंद ,
पानी की ठण्ड ,हडिओं को जकडे जा रही थी ,
साँस को थामें अंदर बैठा रहा ,
फ़िर एक ......शान्ती ,कब क्या हो गया ,
जब आँख खुली तो ,
हॉस्पिटल के आई .सीयू में भरती था ,
और सामने पुलिस खडी थी ,
मुझ पर आत्म -हत्या करने का केस दर्ज हो रहा था ........

1 टिप्पणी:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अजीब।
शांती की तलाश का यह तरीका??