बुधवार, जून 03, 2009

माँ के आसूं

गन्ने से उंचा कद तेरा ,
हवा के झोकों से लहराती तेरी अदा ,
मन तन दोनों तेरा मीठा है ,
अक्सर लड़के तुझे चुरा के खेतों से ले आते हैं ,
छुप कर घर में ,तुझसे आँख मिचौली खेलते हैं ,
तेरी माँ अक्सर तुझे खोजती हुई ,घर -घर भागती है ,
ना पा कर तुझे गन्दी -गन्दी गलियां देती है ,
घर आ कर चूल्हे पे तेरे बापू के लिए ,
गर्म -गर्म रोटियां सेंकती है ,
और मन ही मन तुझे कोसती है ,
और बड बडाती है ,
काश मुझे बेटा हुआ होता , !

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