मंगलवार, जून 02, 2009

कोज़ी होम ९१

साथ - संगत का बहुतअसर होता है .जिस इन्सान के आस -पास रहतें हैं ,वैसी सोच -समझ होने लगती है आपकी वैसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ सच बोलना मैंने गुलज़ार साहब से सीखा,पर दूसरी चीज "कोई गलती करे ,उसको डांटने से अच्छा कुछ नहीं कहना ,वह डांटसे जायदा भारीहोता है यह नही सीख पाया उनसे
मैंने भी एक गलती की थी ,जिसकी वजह से उन्हें अपने घर केबाहर,रात को घंटो मेरा इंतजार करना पड़ा था
और मै सुबह दस बजे पहुँचा बात सन ७५ की है ,खुसबू फ़िल्म की एडिटिंग चल रही थी फ़िल्म सेंटर में उनके सभी सहायक को वहाँ पहुंचना होता था मैं तो गुलज़ार साहब के साथ जाता था ,उनके घर सुबह पहुंच गया
उस दिन घर में कोई नही था ,घर में ताला लगाया और चाभी मेरी तरफ उछाल दी ,मैंने आपनी जेब में रख ली
आज वो गाड़ी भी ख़ुद ही चला रहे थे , शायद पाण्डेय छुट्टी पे गया था
पूरा दिन एडिटिंग में गुजरगया ,शाम को वापस आते हुए ,दादा (के,वैकुण्ठ ) जो हमारी फ़िल्म के कैमरामेन थे ,उनके घर आ गए वहाँ बातो -बांतोमें रात के इग्यारह बज गए ,वहाँ से निकलने के बाद ,
मैं बान्द्रा के सिगनल पर उतर ,भूंख भी मुझे लगी थी अक्सर नेशनल होटल में खाता था , सस्ता और अच्छा
खाना मिलता था , खाना खा कर वहाँ से टहलता हुआ अपने कमरे पे पहुँचा ,रात काफी हो चुकी थी रूम पार्टनर आ कर सो चुका था ,मैं भी सो गया

सुबह जब आफिस जाने के लिए पैंट पहनी ,जेब में वजन चीज महसूस किया ,यह क्या यह तो गुलजार साहब के घर की चाभियाँ , यह देख कर ,मेरे होश उड़ गए मैं हवा की तरह गुलज़ार साहब के
घर पहुंचा ,घर खुला था ,घबराते हुए घंटी बजाई ,दरवाजा खुला सामने नोकर अकबर खडा था
मैंने उससे पूछा साहब कहाँ हैं ? नहा रहें हैं ,उसने जवाब दिया ,आप बैठे ,और वह अन्दर चला गया ,मैं एक
मुजरिम की तरह बैठा रहा थोडी देर बाद वो एक कप चाय ले कर आया मुझे देने ,फ़िर मै ने घबरा के पूछा
तुम जब सुबह आए थे ,तो साहब कहाँ थे ? अन्दर और कहाँ ! मैंने उसे चाभी का गुच्छा दिखया ,तो वह भी सकते
में आ गया ,और बोल पड़ा फिर साहब कैसे अन्दर आए ,वही तो मैं तुम से कह रहा हूँ

अन्दर से गुलज़ार साहब आए ,मुझे देख कर ,हँसते हुए कहा "ससुरे रात भर कहाँ घूमते रहते हो
मैं तुम्हरे कमरे पे भी गया था ,तुम्हरी लैंडलेडी ने नही बताया ,मैं चुप डरा हुआ बैठा रहा ,शायद मेरे डर को पहचान गए , फ़िर अकबर को आवाज दी ,दो नाश्ता लगाना ...............

उसके बाद से जब भी गुलज़ार साहब मुझे चाभी देते ,मुझे लगता मैंने चार सौ चालीस वोल्ट बट्टा रखा है अपनी जेब में ..............

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