बुधवार, जुलाई 22, 2009

दर्द

रोज़ एक दर्द से ,
जूझता हूँ ,लड़ता हूँ ,
अपने आप से दूर भगाता हूँ ,
चलते -चलते मिल जाता है फ़िर भी ,
रास्ते में खडा भिखारी ,
गिडगिडा के मुझ से कुछ जब मांगता है ,?
और मैं बेख्याली में डांट देता हूँ ,
वही दर्द मुझसे चिपट जाता है ,
जोंक की तरह मेरा खून चूसता ,
सर का दर्द बढ़ जाता .......,
खोजने लगता हूँ ,उस भिखारी को ,
उसी नुक्कड़ पर घंटो खड़ा रहा ,
पर वो नजर नही आता ,
फ़िर एक बच्चा ............,
हाथ फैलाए मेरे सामने खडा ,
एक रूपया देकर उसे ,
सुबह वाले बूढे भिखमंगे का ,
उस बच्चे से पता पूछता हूँ
बोला वो तो .....मेरे दादा थे ,
अब ...कल सुबह वो यहीं मिलेगें ........,

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