बुधवार, जुलाई 08, 2009

लकीरें

जब वो मिलता मुझसे ,
मेरी हथेली की लकीरों को पढ़ने की कोशिश करता ,
बडी देर तक देखता ,
फ़िर माथे पे जोर देता ,
कुछ सोचता -फ़िर बुदबुदाता ,और अपने आप से ....,
ग्रहों को जोड़ता -घटाता
फ़िर मेरी आखों में झांकता हुआ ,
कुछ कहना चाहता ........,
फ़िर कुछ सोच के चुप हो जाता ,
उसकी चुप्पी -मुझे एक कच्चे पुल पर चढा देती ,
जिसकी ढलान फिसलन दार होती ,
अक्सर वो जब भी मुझसे मिलता ,
यही हरकत करता ,
कुछ पढ़ के मजमून छिपा जाता ,
आज फ़िर वो मिला ,
मेरी हथेली को लगा देखने .......,
मैंने दो लकीरे ,अपनी हथेली पे बना ली थी ,
जिन्हें इसने भी पढा ,
आज उसके चेहरे पे चमक थी ,
गदगद हो के बोला .......,
तुम्हारी शादी ...अब ......जल्दी होगी ...

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