सब झूठ है ,
कुछ सच नहीं ,
आखों पे झूठ की चादर पडी ,
रंग उसका सफेद ,
दाग आज तक नही पडा उस पर ,
कोई रिश्ता सच नही ,
सब झूठ की डाली पे टिके हैं ,
सुबह उठ के मुर्गे की तरह ,
बांग देते हैं , यह भाईहै , यह पिता ,और यह माँ ,
ऐसे हजारों रिश्तों के नाम पडे हैं ,
लाख जोडो इन्हें ,पर जुड़ते नहीं ,
हमेसा अलग रहते ,आदत जो पडी हैं इनकी ,
यही सच ..........,
4 टिप्पणियां:
सुन्दर रचना.. कभी कभी यह भाव मन में आ ही जाते हैं...
मेरी रचना की दो लाईन इससे मिलती जुलती हैं
उम्मीदों से दहशत है मुझे
और रिश्तों से डर लगता है
हिस्सों टुकडों में बंटा हुआ हूं
खुद को जोड न पाऊं मैं
खुबसुरत भाव ।
सचमुच में बहुत प्रभावशाली लेखन है... बहुत सुन्दरता पूर्ण ढंग से भावनाओं का सजीव चित्रण... आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी… बधाई स्वीकारें।
From- Meri Patrika : www.meripatrika.co.cc/
वैसे भी आजकल रिश्तों का महत्व रहा भी कहाँ है...इसलिए इनमे उलझना ही नहीं चाहिए...
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