गुरुवार, जुलाई 02, 2009

सुबह

ऐसा सुर लगा कोई ....
सागर झूमें जैसे अपनी मौज में ,
वो वहीं पेड़ के नीचे खड़ा ,
बंसी हाथो में लिए ,उदासी का जामा पहने ,
पास ही पेड़ पे बैठी कोयल ,
दर्द पहचान कर उसने छेडा सुर अपना ,
फ़िर मिलन हो गया दो जुगल -बन्दों का ,
पूरा दिन बंसी बजती रही ,
पूरी रात कोयल बोलती रही ........,
सुबह लोगों का ताँता लगा था ,
दो प्रेमी --- उसी पेड़ के नीचे पड़े मिले ,
एक नर था एक थी मादा .........,
आज भी उनकी मजार वहाँ बनी है ,
हिंदू मुस्लिम फूल माला और चादर चढाने आते हैं ....

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

कहाँ का रेफेरेन्स है सर!