मंगलवार, जुलाई 14, 2009

जन्म

वो प्रेमी था ,

प्रेम नही मिला तो ,

मौत को गले लगाया ,

एक दुःख छोड़ गया ,अपनों के दामन में ,

वो माँ जिसने नवमाह का दुःख भोग था ,

एक सुख पाने को उंगली पकड़ के चलना सिखाया था ,

दिया था पहला शब्द माँ का ,

वही माँ बैठी रो रही थी

ख़ुद भी भूत की योनी में जा गिरा था ,

अब भूत बन कर जीता है ,

जिसके लिए मरा था ,

आज उसका ब्याह था ,

प्रेमी दुल्हे के करीब बैठा था ,

एकटक अपनी प्रेमिका को देख रहा था ,

उसको छूना चाहता था ,पर छू नही पाता ,

भूत जिन्दगीse ऊब गया ,

फ़िर से एक इच्छा जागी ,

जन्म लूँ अपनी माँ की कोख से ,

ऐसा हो सकता नही अब ,

ऐसा सुना है मैंने ,

मनुष्य जन्म सिर्फ़ एक बार ही मिलता है ....,

2 टिप्‍पणियां:

विवेक सिंह ने कहा…

हृदयस्पर्शी कविता !

कमाल की भावाभिव्यक्ति !

Udan Tashtari ने कहा…

फ़िर से एक इच्छा जागी ,

जन्म लूँ अपनी माँ की कोख से ,

ऐसा हो सकता नही अब ,

ऐसा सुना है मैंने ,

मनुष्य जन्म सिर्फ़ एक बार ही मिलता है ....,

--बिल्कुल सही!! बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!