गुरुवार, जुलाई 16, 2009

भय

एक भय पाल रखा मैंने ,
घर में घुसते ........,
वो मुझसे -छिटक कर दूर जा बैठता ,
लगता मुझे ध्यान से देखने ,
इस घर में वो कई सालो से रह रहा है ,
मुझ से कहता .........,
छोड़ दो इस बसेरे को ,
कहीं और जा बसों ,इस महंगाई के जमाने में ,
दूर कहीं सस्ता सा घर ले लो .........,
मैंने भी जिद्द कर ली थी ,
इस जगह को छोड़ कर ,
अब कहीं नही जाऊंगा ,
इक रात ..दो बजे ...,
वो भय मुझे जगा रहा था ,
सो रहा था ,गहरी नींद में मैं ,
कुछ समझ में आया नही ,
गुस्से में आ कर मैंने ....,
पकड़ कर उसे ,दरवाजे से बाहर फेंक दिया ,
नींद में पता नही कहाँ से इतनी ताकत आ गयी ,
सुबह , भय मेरे घर के बाहर पडा ,
मुझको कुछ बताना चाह रहा था ,
पर सुनने को मैं तैयार नहीं था ,
पर वो चिल्लाता हुआ , बोलने लगा ,
तुम्हारे घर के ही लोग मुझे पाल रहे थे ,
मैं अपने मन से थोड़े रहता था ..........!
मुझे लगा , घर मेरा बहुत गन्दा हो गया ,
इसकी सफाई अब करना बहुत जरूरी हो गया ....,

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