तलाश ,एक तस्वीर की ,
सुर्ख लाल रंग से बनी ,
जिसका फ्रेम सुनहले रंग का ,
घुमा के जिधर से देखो ,
एक मूरत नज़र आए ,
जो देखने वाले को पहचान के ,
अपनी सूरत वैसी बना ले ,
रोज़ सुबह ,उस फ्रेम का खाका बदलता ,
नया -नया चित्र छप जाता ,
जिसकी पहचान ,लोगों की सोच पर होता ,
आज फ्रेम बिल्कुल खाली था ,
न उसमें रंग था ,न चित्र था ,
एक सफेद कैनवास लटका था ,
नीचे कई रंग बिखरे पडे थे ,
1 टिप्पणी:
बहुत ख़ूब
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गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम
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