मेरी पहली मुलाकात गुलज़ार साहब से , सन १९७२ में जुलाई के महीने
में हुई थी । मुझे तिथि भी याद है ,हुआ इस तरहं । मैं लखनऊ से पूना
आता था ,बम्बई में एक दो दिन रुक जाता था ,फ़िर पूना जाता था । इस
बार जब लखनऊ से जब चला ,तो राम लाल जी से मिलने उनके घर गया ।
उन्होंने मुझे दो अपनी किताबे दी और कहा बम्बई में गुलज़ार साहब को
दे देना । रामलाल जी को गुलज़ार साहब का पता भी नही मालूम था ।
वैसे दोनों लेखक सिर्फ़ ,एक दुसरे से नाम से ही परचित थे ।
मै पूना में अपनी फ़िल्म की पढाई कर रहा था ,उस समय ।
बम्बई आ पहुंचा , उस वक्त गुलज़ार साहब इतने नामचीन नही थे ,वो कहाँ
रहते थे ,कई लोगो से जाने की कोशिश की पर पता नही चला ,आखिर एक
फिल्मी आदमी से मुलाकात हुई ,उसको सिर्फ़ इतना मालूम था । वो पाली हिल
pe कहीं रहते हैं । मैं खोजते हुए पाली हिल पहुंचा ,एक -दो लोगों से पूछा ,पर किसी
को कुछ नहीं मालूम था । मैं ख़ुद भी ,इस जगह से अपरचित था । एक आदमी ,मेरे पास
आया और पूछा किसे खोज रहे हैं ? गुलज़ार साहब का नाम बताया ,कुछ सोच के बताया
कोजी होम । मैं कोजी होम की तरफ चल दिया ,उस वक्त हल्की -फुलकी बारिश हो रही थी ।
कोजी होम ,पहुंच चुका था , गुलज़ार साहब ९१ फ्लैट में रहते थे । मैं थोड़ा भीग चुका था ,
पर किताबों को बचा रखा था ।
3 टिप्पणियां:
आपने किताबों को बारिश से उसी तरह बचा
कर रक्खा , जैसे पुरानी यादों को !
यही तो हमारे सच्चे दोस्त होते हैं --
किताबें और यादें
बहुत -बहुत शुक्रिया
बिल्कुल सही है आप यादो को बहुत ही करीने से सजाकर रखा है ......बहुत ही सुन्दर
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