मंगलवार, अक्तूबर 06, 2009

९१ कोजी होम

मीरा फ़िल्म चली नहीं ,हमारे आफिस में एक खामोशी छाई थी ,
उसको दूर करने के लिए , गुलज़ार साहब निर्माता बन गए ।
बैनर का नाम रखा गया " मेघना फिल्म्स " मेघना गुलज़ार
साहब की बेटी का नाम है । इस बैनर में दो फिल्में बनी ,'किनारा "
और किताब ।
किनारा फ़िल्म की एक घटना है ,जुहू में समुन्द्र के किनारे
एक बंगले में हम लोग शूटिंग कर रहे थे ,सामने समुन्द्र का शोर ,दूर
डूबता हुआ सूर्य ,जीतेन्द्र जी और भूषण जी जो इस फ़िल्म के सहायक
लेखक थे । बैठे -बैठे डूबता हुआ सूरज का रंग देख रहे थे ,दोनों लोगों
के हाथ में सिगरेट थी ,और मस्ती में पी रहे थे ,मैं किसी काम से यहाँ
आया ,तभी दोनों लोगों ने अपने अपने सिगरेट का पैकेट समुन्द्र में फेंक
दिया ,अक्सर मैं भी इन लोगों से सिगरेट मांग कर पीता था ,मैं समझ
नही पाया ऐसा क्यों किया ?
तब जीतू साहब ने बताया ,हम लोग आज के बाद सिगरेट
नहीं पियेंगे । मैं समझ गया ........मैंने कहा आप लोग तो नही पियेंगें
मैं तो पीता हूँ ,मैं जा कर पैकेट उठा लूँ .........जीतू साहब बोले बिल्कुल
नहीं ,उसको बहने दो .........वो दिन था उस दिन के बाद जीतू साहब ने
कभी सिगरेट नहीं पी ..........पर भूषण जी नही माने और दुसरे दिन से ही पीने
लगे ............. ।

2 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार ने कहा…

सिगरेट समुन्दर में फेंक देना ,फिर कभी सिगरेट न पीने की बात करना
अचानक हुआ , इसके पीछे कुछ कहानी जरूर होगी |
कहीं आप ------कुछ छिपा तो नहीं रहे हैं ??

मुनीश ( munish ) ने कहा…

the incident needs elaboration sir . write more.