शुक्रवार, अक्तूबर 09, 2009

९१ कोजी होम

अच्छी -बुरी यादें पीछा छोड़ती नहीं ,अच्छी यादें भूल जाती हैं ,
और बुरी यादें ज्यादा दिन तक याद रहती हैं ।
किनारा फ़िल्म में गोपी कृष्ण जी का साथ मिला ,
इस फ़िल्म में गोपी जी नृत्य निर्देशक वतौर आए ,हेमा जी को
नृत्य की कला से परिचय कराना था ,वैसे हेमा जी ख़ुद बहुत बड़ी
निर्त्यागना हैं ।
मैंने दस वर्ष की उम्र में पहली फ़िल्म देखी थी ,पिताजी और
मामा जी के साथ और फ़िल्म का नाम था ......झनक झनक पायल बाजे
यह फ़िल्म व्ही.शांताराम जी ने बनाया था ,इस फ़िल्म में गोपी जी ने मुख्य
भूमिका निभाई थी । गोपी जी की छाप मेरे दिलो -दिमाग पर छा गयी
मैं बम्बई आ गया .......और मेरे जीवन के पहले हीरो से मुलाकात किनारा
के सेट पे हुई .........गोपी जी अवधी भाषा में ही ज्यादा बात चीत करते थे
मेरी फ़िल्म की युनीट में मैं ही अवधी भाषा बोलता था ...शायद यही वजह
थी ....मैं उनसे थोडा कुछ ज्यादा करीब था ..... ।
मीठे बोल बोले
बोले पायलिया
छूम -छनन बोले
झनक -झन बोले
इसी गीत पर गोपी जी ने हेमा जी को निर्त्य सिखाया था
गोपी जी अपनी साठ वर्ष की उम्र में भी चार -चार घंटे रियाज
करते थे ...........साठ से थोडा ऊपर होगें ....तभी एक रात
अस्थमा का अटैक पडा और इंतकाल हो गया ...........कुछ
महीनों बाद पत्नी का भी अंत हो गया .......एक बिटिया थी
वो मामा जी के पास चली गयी .......वह घर जहाँ बच्चों के
घुघरू बचते थे ...अब एक खामोशी छाई रहती है
एक चीज अब जा कर पता चली .......जब तक आप जीते हैं
आप का घर मन्दिर बना रहता है .......आप के जाते ही ...उस
घर की भी हंसने -खेलने की उम्र ख़तम हो जाती है ......यही
हाल हुआ खार -डांडा रोड पे खडे उस मन्दिर का जहाँ कृष्ण
बसते थे ........और अब ..............;

3 टिप्‍पणियां:

Aman Tripathi ने कहा…

गोपी जी के बारे में कभी मौका मिले तो और जानकारी दीजियेगा...

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

जब तक आप जीते हैं
आप का घर मन्दिर बना रहता है .......आप के जाते ही ...उस
घर की भी हंसने -खेलने की उम्र ख़तम हो जाती है ......यही
हाल हुआ खार -डांडा रोड पे खडे उस मन्दिर का जहाँ कृष्ण
बसते थे ........और अब ..............;

गोपी जी के बारे में इस नयी जानकारी के लिए शुक्रिया ......!!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

ज़िन्दगी की बहुत बड़ी सच्चाई लिख दी है आपने...दुनिया तब तक ही है जब तक आप हैं...

नीरज