शुक्रवार, अक्तूबर 30, 2009

९१ कोजी होम

अक्सर फ़िल्म में सहायक लोगो हीरो -हिरोइन सताते है ....पर हमेसा यही देखा गया है ...निर्देशक हीरो का ही साथ
देता है ....और सहायक को फूददु बना देते हैं ......पर गुलज़ार साहब की यह आदत नहीं थी .....कई बार तो हीरो के कहने
पे सहायक को निकल देते हैं निर्देशक लोग .........यह मैं इस लिए कह रहा हूँ ......यह मैंने देखा है ।
अंगूर फ़िल्म की एक और इसी तरह की घटना है ....हम लोग एसेल स्टूडियो में शूटिंग कर रहे थे ......संजीव कुमार
और पद्मा चौहान के सीन था .....जिस में यह दिखाया गया .......संजीव जी जब अपने घर जाते हैं तो पत्नी दरवाजा नहीं खोलती
और गुस्से में वो अपनी फैमेली फ्रेंड पद्मा के घर आ जाते हैं ........अब अगर संजीव कुमार यहाँ रहते है तो ....पहने क्या ?
गुलज़ार साहब ने कहा ...पद्मा अपने घर में अकेले रहती है तो .....कोई साडी ले कर आवो ....मैं ड्रेस मैन के पास गया
उससे कहा ....अपनी ड्रेस में कोई साडी है ...उसने ..एक साडी निकाल कर दी ........मैंने गुलज़ार साहब को दिखाया ....उनको ठीक लगा
मैंने ड्रेस मैंन को दे दी .....और उससे कहा हरी भाई को पहना दो ....लूंगी बना कर .....हरी भाई ने पहन लिया सीन शूट होना शुरू
हो गया ......... ॥
हमारी फ़िल्म की हिरोइन मौसमी चटर्जी आ गई .......और जब उन्होंने अपनी साडी पहने हरी भाई को देखा ......उन्होंने
ड्रेस मैंन से बात की यह तो मेरी साडी है किसने संजीव जी को पहनने को दी .?......ड्रेस मैंन घबरा गया ....उसने मेरा नाम लिया ...फ़िर
सेट पे ड्रेस मैंन आया और कहा , मुझे मौसमी जी बुला रहीं हैं ..........अभी तक मुझे कुछ मालूम नही था .....मैं ........
गया उनके पास ...उनका गुस्सा सातवें आसमान पे था .......उन्होंने जोर से बोला तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ...मेरी साड़ी देने की ....मैंने
कहा यह साडी आप की पर्सनल नही है फ़िल्म की है ......और निर्देशक ने कहा और मैंने ला कर दे दी ......और जो कुछ कहना है ..तो आप ..
वह गुलज़ार साहब से कहें ....वही अच्छा होगा ......इतना कह कर मैं सेट पर आ गया .......इस घटना के बाद वो मुझसे बहुत कम बात
करती थी ........पर गुलज़ार साहब से कहने की हिम्मत नहीं हुई ......

4 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छा संस्‍मरण, आभार पुरानी यादों से रूबरू कराने का ।

ओम आर्य ने कहा…

यादो के पिटारे से गुलजार साहब का जिक्र मुझे बहुत ही अच्छा लगता है.उनकी फिल्मे हो या उनकी नज़्मे मुझे बेहद बेहद पसन्द है !संसमरण के लिये आभार!

ओम आर्य ने कहा…

यादो के पिटारे से गुलजार साहब का जिक्र मुझे बहुत ही अच्छा लगता है.उनकी फिल्मे हो या उनकी नज़्मे मुझे बेहद बेहद पसन्द है !संसमरण के लिये आभार!

Arshia Ali ने कहा…

आपके संस्मरण पढकर अच्छा लगा।
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