...........गुलज़ार साहब अजन्ता आर्ट्स स्टूडियो में पहुँच गए ...संजीव कुमार जी से भी बात हो गई ....हम सभी लोग
संजीव कुमार का इन्तजार करने लगे ......अजंता स्टूडियो श्री सुनील दत्त जी था ....इसी स्टूडियो में उनका बंगला भी था
जहाँ वो सा परिवार के साथ रहते थे .....अब तो वहां एक बहुत बड़ी बिल्डिंग बन गयी है ।
संजीव कुमार जी आ गए ........गुलज़ार साहब से मिले ....और डबिंग करने के लिए .....निचे स्टूडियो में पहुंचे
मैं संजीव कुमार जी से नही मिला ..................ईसा बाबा ने मुझे अपने पास बिठा लिया ......डबिंग शुरू हो गई और
उसी सीन से शुरू हुआ जो कल हरी भाई छोड़ कर गए थे .......गुलज़ार साहब ने हरी भाई को समझाया ....मैंने .......
इस सीन के सवांद को बदलने के लिए कहा था ......अब आगे की डबिंग ...राम लाल ही करवाएगा कोई दिक्कत हो तो बता दो .....
हरी भाई चुप रहे ...कुछ बोले नही .....गुलज़ार साहब उठ कर चल दिए ......जाते -जाते मुझे बुलाया और कहा डबिंग शुरू करो ....
मैंने आगे की डबिंग शुरू की .........
2 टिप्पणियां:
बड़े अच्छे ,रोचक और प्यारे संस्मरण
वाकई संसमरण को पढ़ना मेरे लिये बहुत रुचिकर होता है...और आपके संस्मरण बी हमें रोचक लग रहे हैं.....लिखते रहें साधुवाद
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