बुधवार, अक्तूबर 14, 2009

९१ कोजी होम

किनारा फ़िल्म पूरी हुई ,और रिलीज किया गया ,पर जितना सोचा
गया था उतनी फ़िल्म नहीं चली ,फ़िल्म में घाटा हुआ इस घाटे को
पूरा करने के लिए ,एक छोटी सी फ़िल्म बनानी थी और फ़िल्म शुरू हुई
किताब ..........यह एक बच्चे की कहानी थी ,जो शहर में अपने जीजा जी
और दीदी के साथ रह कर अपनी पढाई कर रहा है ........घर का माहौल
ठीक नही है यह लड़का मास्टर राजू का मन पढाई में नहीं लगता है .....घर
से स्कूल तो जाता है ......पर अपने दोस्तों के साथ इधर -उधर घूमता है
इस फ़िल्म में जीजा जी का रोल स्वर्गीय उत्तम कुमार कुमार जी
निभा रहे थे ....बंगला फ़िल्म के सुपर स्टार थे .........पहली बार उनसे मुलाकात थी
हिन्दी पढ़ नही पाते थे ......उनको रोमन इंग्लिस में लिख कर संवाद देना पड़ता था
पर हिन्दी बहुत साफ़ बोलते थे .......गुलज़ार साहब के संवाद में उर्दू के अल्फाजों की
भर -मार होती थी ........और उत्तम कुमार जी के लिए बोलना मुश्किल होता था ......
मुश्किल मेरे सामने आती ........मैं ख़ुद चेंज कर नही सकता था ........मुझे गुलज़ार
साहब के पास जाना पड़ता था और उनकों इस मुश्किल के बारें में बताना पड़ता था
गुलज़ार साहब फ़िर कुछ संवाद को बदलते ..........कुछ मुझे कहते ..इसकी
हिन्दी बताओं ....फ़िर मैं सोचने लगता ...तब तक वो एसा खूबसूरत हिन्दी का शब्द
लिख देते ....जो हमारे सोचने से परे होता ........फ़िर ख़ुद ही कहते ......क्या है ..मैं सिर्फ़
उर्दू में ही सोच सकता हूँ ......अब तो गुलज़ार साहब , हिन्दी भी लिख लेते हैं और पढ़ भी लेते
हैं
इस फ़िल्म में बच्चों की भर मार थी ....आठ से दस वर्ष बच्चों की जरुरत थी
बच्चे हमारे आफिस में आते थे .......इसी दौर एक लडका आया ...जो उम्र में पन्द्रह साल का था
हमने देखा चंदू जो मुख्य सहायक थे उन्होंने ने भी देखा ..........हम लोगो ने उसे मना कर दिया
हमारे प्रोडक्शन के सिंह साहब जो इस लडके को ले कर आए थे ....कहने लगे बडे गरीब
घर का है .......रख लो लडकों के पीछे खडा कर देना .........वो लडका जानते हैं कौन था ? अनीस वाजमी
आज का नामचीन निर्देशक ............इस लिए किसी बच्चे को अंडर एस्टीमेट नही करना चाहिये
इस फ़िल्म की शूटिंग पनवेल रेलवे स्टेशन पे की थी ..........किस तरह राजू घर से भाग कर
ट्रेन से अपनी माँ के पास जाता है ...फ़िल्म में इस्टीम इंजन से ही गाड़ी चलती है .......इस तरह के इंजन
में पानी की बहुत जरूरत होती है ...........एक दोपहर इंजन का पानी ख़त्म हो गया .........और शाम तक शूटिंग
करनी थी ....वज़ह डाक्टर लागू साहब की डेट नहीं थी ...........वगैर पानी के इंजन चल नहीं सकता ....
पानी लेने के लिए इंजन को थाना स्टेशन jaanaa था ........उसको वहां से आते -आते रात हो जायेगी
अव क्या होगा .........जहाँ इंजन खड़ा था .....वहीं पास में एक तालाब था .........गुलज़ार साहब ने बीस बाल्टी
मंगवाई ....और इंजन से ले कर तालाब तक हम लोगों की एक चेन बनवा दिया ........और हर आदमीं तालाब
से पानी लेता और अपने पास वाले आदमी को देता .......और इस तरहं इंजन में दो घंटे में पानी भरा गया
फ़िर शूटिग की गयी ......
इसी फ़िल्म का एक गीत है जो पंचम जी ने गाया था

धन्नों की आखों में
है रात का सुरमा
और चाँद का चुम्मा
धन्नों की आंखों में .....है रात का सुरमा ........

ज़हरीली तेरे बिना रात लगे
छाला पडे आग जैसे
चाँद पे जो हाथ लगे
ध्न्नों का गुस्सा है
पीर का जुम्मा
और चाँद का चुम्मा ............

1 टिप्पणी:

अजय कुमार ने कहा…

sach hai kisi ko bhi kam nahi aankana chahiye