बुधवार, अक्तूबर 21, 2009

९१ कोजी होम

किताब फ़िल्म ,करीब तीन महीनों में पूरी हो गई ,रिलीज़ भी हुई ।
पर फ़िल्म उतनी नहीं चली ,जिसकी वजह से गुलज़ार साहब को काफी
नुकशान उठाना पडा .........फ़िर इसके बाद से गुलज़ार साहब फ़िल्म
निर्माण का काम बंद कर दिया .........बहुत दिनों तक हम सभी सहायक बेकार रहे ........यह वह दौर होता है ,जब हमारे पास काम नही होता और ना
पैसा ...........चार -चार महीने गुज़र जाते ...हम सहायक लोग बाहार ...
काम की तलाश कर देते ......इसी दौर में मेरी पहचान दीप्ती नवल से हुई
जो छोटी -छोटी फिल्में कर रहीं थी .....मैं उनसे मिला ....उन्होंने मुझसे कहा
मेरे मैनेजर बन जाओ .......मैंने उनके साथ तीन महीने काम किया ...
गुलज़ार साहब की लिबाश फ़िल्म शुरू हो गई ..........इस फ़िल्म में
मैं मुख्य सहायक हो गया ....यन चंद्रा निर्देशक वापू के साथ मुख्य सहायक
हो गया और फुल फ्लैश एडिटर उसी फ़िल्म का हो गया ..........उसके कैरियर
ने एक नया मोड़ ले लिया ............दो साल बाद यन .चंद्रा ने अंकुष फ़िल्म बनाई
हाँ तो मैं कह रहा था ,लिबाश ..............में राज बब्बर ,शबाना आज़मी और
नसीर साहब थे ......फ़िल्म के निर्माता आज के जाने माने सुपर सिनेमा मैगजीन
के एडिटर विकाश मोहन जी थे ......इस फ़िल्म की कहानी आज के दौर में जो
पति -पत्नी के rishte पर आधारित है ......रिश्ते लिबाश नहीं हैं जो हर चार महीनों
बदल दिया जाय ...........इसी फ़िल्म का एक गीत है जो कुछ इस तरहं है ...

खामोश -सा अफसाना ,पानी से लिखा होता ,
ना तुमने कहा होता , ना हमने सुना होता ,
खामोश -सा अफ़साना .........
दिल की बात ना पूछो ,दिल तो आता रहेगा ,
दिल बहकाता रहा है ,दिल बहकाता रहेगा ,
दिल को तुमने ,कुछ समझाया होता
खामोश -सा अफसाना ...............,
यन.चंद्रा की वो दो फिल्में थी .जिनमें वो वपू के साथ थे "वो सात दिन " और बेजुबान
और प्राण लाल मेहता जो बहुत बडे निर्माता थे उन्होंने भी चंद्रा से वादा किया था ...
एक फ़िल्म देने को ...........पर वादा -वादा ही रहा .....वो उस वक्त वरली की एक चाल नुमा
घर में रहता था .........फ़िल्म का ज्ञान उसे बहुत था अक्सर हम दोनों आपनी कहानियों
को एक दुसरे को सुनाते थे ........आज भी हम दोनों जब मिलते है ....पुरानीं यादे ...निकल
पड़ती हैं ...

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