गुरुवार, अक्तूबर 22, 2009

चाँदनी -रात पहाडों की

पहाडों का सफर ...कब झूठ बोलता ,
मुझे पकड के ...अकेले में ले जाता ,
आंखों पे हथेली ..रख के ..............,
ओंठों को अपने ..ओंठों से बंद कर के ,
कुछ कहने की कोशिश करता ,
कानों से जबान लगा के बोलता ,
वो प्यार की शाम रुक जाय ॥
उस जंगल की पतझड़ की रात ,
बस जीती रहे उसके सपनों के साथ ,
मुझे उसकी बातें समझ आती नहीं ,
पर उसके स्पर्श के चुम्बन से हार जाता ,
वो पहाड़ की रात ...आज भी याद है
चाँदनी रात में आज भी उसका बदन ...
संगमरमर सा पिघलता है

1 टिप्पणी:

M VERMA ने कहा…

चाँदनी रात में आज भी उसका बदन ...
संगमरमर सा पिघलता है
बेहद खूबसूरत एहसास