लिबास फ़िल्म के दौरान उनके निर्माता से अच्छी दोस्ती हो गई ,
इनका आफिस रूपतारा स्टूडियो में था .....जब इनके आफिस जाता
मेरा खूब आव -भगत होता .....यही से मैंने पाँव और भजिया खाना
सीखा लंच के वक्त ..........इनके परिवार में यह तीन भाई थे ,मोहन भाई
विकास जी और सबसे छोटे कुमार जी ......इन सब में मोहन भाई सब से
सीधे थे .........विकास जी बहुत तेज ...वो इतने तेज की वो हवा से भी झगडा
कर लेते .......कुमार जी बहुत मीठे ......गरीबी में कैसे जिया जाय
यह मैंने इन लोगों से सीखा .......मेरे घर में टेलीविजन पहली बार आया ....
इन लोगों की वजह से .......मौके - बे मौके मेरी सहायता की ....पहली बार
मुझे निर्देशक इन लोगो ने बनाया ..........टी.वी। सीरियल " किस्सा शान्ती
का " निर्देशन मुझे सौपां ..........सन ८७ का दौर था ......पहली बार लिखने
और निर्देशन करने का मौका मिला .........
इसी दौर में गुलज़ार साहब की दूसरी फ़िल्म अंगूर शुरू हुई ......
इस फ़िल्म का भी मै मुख्य सहायक था ...... ,
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