अब मैं उस दौर की बातें बता रहा हूँ .......जब मैं गुलज़ार साहब के साथ नहीं था ,,उनका साथ छूट गया था
मैं कई सालों तक गुलज़ार साहब मुख्य सहायक बना हुआ था .......गुलज़ार साहब के पास भी कोई फ़िल्म
नहीं थी .....और सहायक बाहर कुछ न कुछ काम कर कर रहे थे ..मैं सुबह आफिस आता शाम होती और घर
चला जाता ......दिन बीतने लगे .इसी बीच लन्दन के रहने वाले बलराज जी ......वो एक फ़िल्म कई बरसों से बना रहे थे
जिसमें मुझे सहायक का काम मिल गया .....फ़िल्म का नाम था ......जलियांवाला बाग़ इस फ़िल्म में विनोद खन्ना जी थे
दीप्ति नवल शबाना आज़मी ,प्रक्षीत सहानी ॐ शिवपुरी ...इस फ़िल्म में गुलज़ार साहब ने एक छोटा सा भी किरदार किया था
फ़िल्म की गाहे -बगाहे शूटिंग चलती थी ....इस तरह कई महीने बीत गए .....
गुलज़ार साहब की फ़िल्म शुरू हुई , जिसका नाम था ......इज्जाजत ,दो गाने भी रिकॉर्ड हो गये ..मुझे लगा चलो
एक काम और शुरू हो गया ......इसी बीच गुलज़ार साहब आस्ट्रेलिया गए ....बलराज जी उन्हें छोड़ने गए थे .....दुसरे दिन ,जब
मैं आफिस पहुँचा .....राम आ चुका था ,चाय पिलाया ....थोडी देर बाद बलराज जी आ गए उनके आने से एक खुशी होती थी ,वो
अपने पास सिगरेट हमेशा रखते थे ....उन्होंने ने भी चाय पी ....वो ख़ुद ही कहते थे चलो एक एक तम्माखू हो जाय ...
हम ने एक एक सिगरेट पी ....फ़िर मैंने पूछा गुलज़ार साहब चले गए ....?.उन्होंने हूँ में कहा .....एक कस खीचते हुए ,
फ़िर एक खामोशी छाई रही ........मुझे वो मिसरा जी कह के बुलाते थे ......कहने लगे ....गुलज़ार साहब आप के लिए एक
मैसेज दे कर गए हैं .....मैं कुछ नही समझा ...पूछा क्या कहा है ..?.कहने लगे ....आप कहीं और काम देख लीजिये ..इस फ़िल्म में
वो किसी और को मुख्य सहायक लेना चाहते हैं ..सुन कर ...मैं बिल्कुल सन्नाटे में आ गया ....कुछ देर बाद अपने को सभालते हुए ,बलराज जी
से कहा ....गुलज़ार साहब मुझ से कह के जाते तो .........!.एक नौकरी छूटने पे कैसा महसूस होता है .....बिल्कुल अंधेरा ....घर पर तीन
बच्चे समझाता ....इतनी जल्दी नौकरी कहाँ मिलेगी .......?.कुछ सोचता हुआ गुलज़ार साहब के आफिस से बाहर आया ...... ।
मैं घर की तरफ़ चल दिया .........मैं इस शहर में बिल्कुल अकेला हो गया ......मैं अपने आप को ........
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