बुधवार, नवंबर 04, 2009

९१ कोजी होम

मैं जब घर पहुँचा तो पत्नी ने पूछा ......बडी जल्दी आ गए .....मैं कुछ बोला नही ,पास पड़ी तिपाई पे लेट
गया .....पत्नी समझ गई ....कुछ बात जरुर है ....गुलज़ार साहब चले गए बाहर ..?...हूँ कल रात में गए ,
इसी लिए जल्दी आप आ गए ..?..वगैर किसी लार -लपेट के कह दिया ...छुट्टी मिल गई ..गुलज़ार साहब ने
कहा कही और काम देख लो ....उन्होंने किसी और को मुख्य सहायक रख लिया है .....पत्नी भी चुप हमारा
गुलज़ार साहब के अलावा कोई और नहीं था .....जिससे हम काम की उमीद रखते ....पत्नी ने ही याद दिलाया
......सुभाष जी से क्यों नही मिलते ?

दूसरे दिन सुबह -सुबह सुभाष घई साहब के घर गया ....इस वक्त सुभाष जी ,बहुत बडे कमर्शियल
निर्देशक बन चुके थे ....उनकी फ़िल्म कर्मा सेट पे थी .....सुभाष जी को और उनकी पत्नी रेहाना जी को बहुत
अच्छी तरह पहचानता था ....पूना में जब सन ७२ में पढ़ता था ,तब मैं और सुभाष जी के छोटे भाई आशोक जी के
साथ रेहाना जी के घर जाता था ..तब तक सुभाष जी की शादी नही हुई थी ....अशोक भी मेरे साथ पूना में फ़िल्म की
पढाई कर रहा था ....और हम दोनों हॉस्टल में एक ही रूम में रहते थे .....जब तक हम पूना में रहे ,एक ही कमरे
में रहे ..... ।
शुभाष जी घर पर नही थे ..भाभी जी से मुलाकात हुई .......कई महीनों बाद मिल रहा था ...उनको मालूम था
मैं गुलज़ार साहब के साथ काम कर रहा हूँ .......रेहाना जी बहुत ही मिलनसार हैं ....मुझे देख कर खुश हुई ..बच्चों का हाल
पूछा ..घर में बिठाया .....पहला ही उनका सवाल था ...काम -काज कैसा चल रहा है ...?. मैंने उनको सब सच बता दिया ....
उन्होंने कहा ...कल सेकंड सन्डे है सुभाष जी घर पर होंगे ....मैं उनसे बात कर लूगीं ....तुम आ जाना ....

बहुत खुश -खुश घर लौटा .........और पत्नी को बताया ...वह भी खुश हुई .....अब यह समझ नही आ रहा था
सुभाष जी किस डिपार्टमेन्ट में रखे गें ...

2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आप अपनी घटनाओं को विस्तार दें ताकि पढने में आनंद आये...आप बहुत तरसा तरसा कर पढ़वाते हैं...कुछ तो अधिक लिखा कीजिये...
नीरज

ओम आर्य ने कहा…

मै भी नीरज जी के विचारो से सहमत हूँ......अच्छी लग रही है आपकी संसमरण!