गुरुवार, नवंबर 05, 2009

९१ कोजी होम

घर आ गया ,दस हजार रूपये ले कर ,पत्नी के हाथ में पैसे रखे ,उसका चेहरा खुशी से खिल
गया । मैं पैसे देकर , सुभाष जी के आफिस पहुँचा ,यहाँ भी मेरा पहला दिन था ,वैसे यहाँ भी
सभी लोग जानते थे मुझे ......... कुछ तो दोस्त ही थे ......शूटिंग...... कर्मा फ़िल्म की महीने बाद ...
फ़िल्म सिटी में थी ....कुकू से मैंने कहानी जान ली .......कहानी कुछ ... "दो आखें बारह हाथ " जैसी कुछ थी
कैदिओं को सुधारने की थी .......नसीर ,जैकी ,अनिल कपूर ,यही तीन खतरनाक कैदी थे ,जिन्हें फांसी
की सजा सूना दिया गया था । दलीप साहब एक जेलर थे जो इन्हें ले जा रहे थे ...उस जगह जहाँ इन्हे
किसी मुलजिम को अपने शिकंजे में फंसना था .....
मैं टी पी अग्रवाल से मेरी मीटिंग चल रही थी .....कहानी दिल्ली के किसी लेखक से लिखा कर
लाये थे .........वह लेखक भी साथ आया था .......चार गानों की रिकॉर्डिंग शुरू की ...महबूब रिकॉर्डिंग स्टूडियो
में ....पहला गाना किशोर दा ने गया .....मैंने गुलज़ार साहब को बुलाया पर वो आ नही पाये ...वह अपनी फ़िल्म
इज्जाजत में व्यस्त थे ........
चार गानों की रिकॉर्डिंग पुरी हो गई ........अग्रवाल साहब दिल्ली चले गए .......और मुझे कहते गए
दस दिनों बाद मैं भी दिल्ली लोकेशन देखने आ जाऊँ ।
मैं दिल्ली पहुँचा ...उनके बंगले में ही ठहरा ..उनके दो बच्चे थे छोटे -छोटे थे ........वहां लोकेशन
देखे ......और चार दिन रह कर वापस मुम्बई आ गया ........

2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

फिर क्या हुआ...??? आप बहुत छोटी सी बात कर के रह जाते हैं...मन नहीं भरता...
नीरज

ओम आर्य ने कहा…

हाँ आप बहुत ही छोटी 2 पोस्ट प्रकाशित करते है सच मे मन नही भरता है !कृपया जारी रहे.......

ओम