शुक्रवार, नवंबर 06, 2009

९१ कोजी होम

दोस्तों ,आप लोग मेरी यादों में शामिल होते हैं उसके लिए धन्यबाद ...........
मैं दिल्ली से मुम्बई आ गया ......मन में एक ख़्याल आया ,एक ही काम कर
सकता हूँ ....या तो मैं सुभाष जी का सहायक रहूँ ...या निर्देशक बन जाऊं ......यह सारी बातें
मेरे मन में उथल -पथल कर रहीं थी ....मैं सुभाष जी के आफिस जाता रहा ......इसी बीच दलीप
साहब की डबिंग करना था ....मैं और एक सहायक अजंता डबिंग स्टूडियो पहुंचे ....दलीप साहब
का बंगला दत्त साहब के स्टूडियो के बगल ही था । दलीप साहब समय पे आ गए ...पहले उन्होंने
पूरा सीन देखा फ़िर डबिंग शूरू की .......जिस अदा से सीन डब करते थे ....वह मेरे लिए एक अलग
अनुभव था .......उनसे बात करना .....उनकों सिर्फ़ देखते रहना ....आज महसूस करता हूँ ..तो बडा
सुख मिलता है ......शाम हुई ..कहने लगे ....भई तुम लोग नाश्ता नही करते ....?..हम सभी लोग एक साथ
बोल पडे , जी करते हैं तो ....ठीक है , आज मैं अपने घर से नाश्ता मंगवाता हूँ घर उन्होंने फोन किया
और प्याज की पकौडी मंगवाई ....
हम सभी लोगों ने उनके साथ ....नाश्ता किया ...अजंता आर्ट्स स्टूडियो में एक आम का पेड़
था ,जिसके नीचे बैठ कर हम सभी लोग दलीप साहब के साथ नाश्ता करते रहे .....शाम ..रात में बदल गई
ख़ुद ही दलीप साहब ने कहा ....अब आगे की डबिंग कल करे गें .....दलीप साहब उठे और पैदल ही घर की तरफ
चल दिए .......,
टी .पी .अग्रवाल दिल्ली से आ गए .....मेरे पास फोन आया ........मैं जुहू के होटल में ठहरा हूँ ...
मैं शाम को ही उनसे मिलने गया ......
उनका मूड कुछ ठीक नही लग रहा था .........मुझ से कहने लगे ........मैं फ़िल्म को अब नही बनाऊंगा
......मैंने पूछा क्या बात है ? .......पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया .....बस यही कहा मैं फ़िल्म बनाना नहीं
चाहता हूँ ....उनको समझाना अब मुश्किल हो रहा था ......फ़िर कहने लगे एक नोट लिख कर मैं उनको दे दूँ
की मैं फ़िल्म नहीं कर रहूँ ........मैं समझ गया .......इसके मन में खोट आ गया .......मैंने नोट दे दिया .... ।

दस दिनों बाद यही फ़िल्म बी आर ईशारा कर रहे थे .....किसी दोस्त ने बताया .....फ़िर निर्देशक
बनते -बनते रह गया .....जीवन में एक बात महसूस की .....बहुत जल्दी किसी का विस्वास नही करना चाहिये

2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आपके संस्मरण बहुत रोचक होते हैं...सिनेमा के परदे जो दीखता है वो हकीकत में नहीं होता ये बात आपकी बातों से पता चलती हैं...प्रसिद्द व्यक्तियों की ऐसी बातें जिनका किसी आम को पता नहीं होता वो आप प्रकाश में ले आते हैं...लेकिन जैसा की मैं बार बार कहता हूँ आप अपने लेख को बहुत छोटा लिखते हैं...पढ़ कर तृप्ति नहीं मिलती...आप चाहे रोज न लिखें लेकिन जब लिखें खूब लम्बा लिखे...तभी मजा और अधिक बढेगा...
नीरज

अजय कुमार ने कहा…

नीरज जी- थोडा इंतजार का मजा लीजिये
और मिश्राजी वो टी पी अगरवाल जी की फिल्म का
नाम , जो गाने रिकार्ड हुए उनके मुखड़े , ये सब
तो बताया कीजिये