ग़ालिब सीरियल मेरी जिन्दगी एक ऐसा अंग बन गया ......जिसको सालो साल भूल नही
पाया । सुबह सेट पर चले जाना और शाम या देर रात को घर वापस आना .....शूटिंग ख़त्म
हो जाने के बाद भी सेट पर रहना ......वहाँ रहते हुए ...ऐसा लगता जैसे सौ साल पहले की जिन्दगी
जी रहें हों .....मेरे बहुत करीबी दोस्त मेराज साहब गुलज़ार साहब के खास सहायक थे ,वैसे वो
निर्देशक थे तीन चार फ़िल्में रिलीज हो चुकी थी ,जैसे "पलकों की छावं में " सीतारा ,सरकार ,गुलज़ार
साहब के कहने पे उनके साथ काम करने लगे थे ....उनकी एक चंडाल -चौकड़ी थी ,जो उनके साथ ही रहती थी
और मुझे उन सभी को ..इस सीरियल काम भी देना था .....शूटिंग पैकअप होते ही ....एक लडका महिम से
कबाब लेने चल देता ....ग़ालिब के उसी पलंग पर बैठ कर ओल्ड मोंक की बोतल खुल जाती ....फ़िर कल की
शूटिंग की बात चीत होती ...कबाब खाया जाता .......और अपने -अपने घरों को चल देते ....यह सारी हरकते
नसीर भाई को पता चली ....वह भी अक्सर अपने प्ले का रिहर्सल यहीं सेट के मेकअप रूम में किया करते
और अब हमें नास्ता डबल मंगाना पड़ता ....
इसी दौर मेरे निर्माता विकास मोहन जी आए और कहने लगे ...किस्सा शान्ति का " का
सीरयल पास हो गया ....मतलब मुझे निर्देशक वतौर शूटिंग शुरू करनी थी ......अब फ़िर से मेरे सामने एक
मुश्किल आकर खड़ी हो गयी .....मैंने विकास से बात -चीत की और उसे समझाया .....पहले तेरह एपिसोड
की कहानी लिख ली जाय ....फ़िर शूटिंग शुरू की जाय ......उसको यह बात समझ में आ गयी ...
नीना गुप्ता ने इस सीरियल में एक कोठे वाली का किरदार निभाया था ....जिसके कोठे पे
ग़ालिब जाया करते थे ....मुझे कहा गया नीना की डेट ले लो ....मैं जब नीना से उनके घर पे मिला ...तो वह ख़ुद
ही कहने लगी ......मेरी शूटिंग जल्दी कर लो वरना ...मेरा पेट और नजर आने लगे गा ...अभी तक मैं कुछ
समझा ही नही फ़िर उन्होंने खुल कर बताया ...रिचर्ड से प्रेग्नेंट हैं ......और शादी -वादी कुछ भी नही ,,,फ़िर हम लोगो ने जल्दी -जल्दी उनकी शूटिंग की .......सीरियल देखते हुए आप महसूस करेंगें ....नीना जी ने सिर्फ़
बैठ कर नृत्य को पूरा किया ......
इस सीरियल में बहुत अच्छे -अच्छे कलाकारों से मुलाक़ात हुई ,राजेंद्र गुप्ता ,अजीत व्च्छानी
मनोहर सिंह ,रीता उपाध्या ,मैक मोहन ,और भी बहुत सारे लोग हैं जिनके नाम इस वक्त याद आ नहीं रहा .....
ग़ालिब साहब शराब के शौक़ीन थे ....और विदेसी शराब के शौक़ीन थे ...और जिसे मेरठ
छावनी से लेने जाते थे ,और आठ आने की एक बोतल मिलती थी ....और उस वक्त आठ आने तोला सोना भी
मिलता था ....ग़ालिब साहब एक बोतल नही खरीदते थे .....बल्की चार -चार बड़ी -बड़ी पेटियां खरीद कर लाते थे .......क्रमश
खाच्चा
2 टिप्पणियां:
बहुत सधी बात बता रहे है ,तार न टूटने
पाये
बहुत आनंद आ रहा है अब किस्सों में...सुनाते चलें...
नीरज
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