सोमवार, नवंबर 23, 2009

९१ कोजी होम

सुबह हुई ........कुछ लिखी हुई फ़ाइलें निकाली ...एक बार उन सब कहानिओं को थोड़ा पढ़ा ....अशफाक का फोन

आया ,शाम चार बजे का टाईम ले लिया है यह उसने बताया । संतूर होटल जुहू में है .....मैं अशफाक के साथ होटल पहुंचा ....किसी निर्माता को कहानी सुनाने का मतलब ,आप अपना इंटरव्यू दे रहें हैं ...वह आप को सब तरफ़ से भांप रहा है ....निर्माता को मेरी कोई कहानी पसंद नही नही आई ....निर्माता अपने बारे में बताने लगा ,जापान

में कहाँ रहता है ......और यह भी बताया ,वह अपने भाई को हीरो लेना चाहता है । फ़िर उसने अपने भाई को बुलाया और उससे मिलवाया , भाई देखने में ठीक लग रहा था .....मैं कुछ नही बोला नही ....चाय आयी हम सभी लोगो ने पी ........मुझे लगा अब मेरा यहाँ काम बनने वाला नही , खिसकने में ही समझ दारी है ..मैंने चलने की

इजाजत मांगी .....फ़िर कहने लगे ......यह कैसेट लीजिये और इसको देखिये ......अगर इस पर कुछ लिख सकते हैं

तो दस दिन हम लोग दिल्ली से फ़िर आ रहें है ....अगर आप का लिखा हमें पसंद आया ...तो हम आप को लेखक

के बतौर जपान ले चले गें ..दो महीने के लिए ,फ़िल्म की पूरी शूटिंग नागोया शहर में होगी .......मैंने वह कैसेट ले

लिया .....और अशफाक के साथ घर आ गया ......



घर में पत्नी इस इन्तजार में ......शायद कुछ माल ले कर मैं आउंगा ......पत्नी को कैसेट दिखाया

......इसको देखूं और एक कहानी लिखूं ....फ़िर उनकों सुनाऊं .....पसंद आए फ़िर जा कर समझो कुछ धन की आश हो गी ......पत्नी का मुहं टेढा बन गया ...फ़िर अशफाक को दो बातें सुनाई .....ये भी ऐसे लोगों को ले के आता है

जो साले कड़के होते हैं .....पत्नी की बातें आप लोगों को भी सच्ची लग रहीं होंगी ....... ।

वह कैसेट जो निर्माता ने दिया था .....वह इंग्लिस फ़िल्म " ब्लैक रेन " थी .....पहले मैंने उस फ़िल्म को दो तीन बार देखा .....और उस फ़िल्म को हिन्दी फार्मूल में ढाला ....और एक कहानी तैयार की ..यह काम

मैंने कुल चार दिन में कर लिया .......मेरे पास उनका कोई पता भी नहीं था .....वैसे वह लोग हिदुस्तानी थे ...दिल्ली

में कहाँ रहते हैं मुझे नहीं मालूम था ......

एक रोज सुबह -सुबह मेरे घर के नीचे से कोई मुझे आवाज देने लगा ...देखा तो निर्माता

ललित वक्षी खड़े थे .....मैं नीचे गया .....और शाम को मिलने की बात की ...मैंने उनकों बताया मैंने कहानी लिख ली है । पत्नी को बताया ,जापान के निर्माता थे ,और शाम को मिलने की बात तय हुई है । पत्नी
ने कहा ...अगर उनकों कहानी पसंद



आए तुरंत पैसे की बात करना इन लोगों का कोई अता -पता तो मालूम है नही .....और कहानी को उनकों सुनाने

से पहले रायटर एसोसिअसन में रजिस्टर करा लें ........मैंने उनकी बात सुनी तो जरुर पर अनसुनी कर के चल दिया ..........उनके होटल पहुँचा ,कहानी सुनाई पसंद आयी ........और कहने लगे आप ही इसके निर्देशक बन
जाएये .....मैंने हाँ कह दिया .......और मुझे पैसे दिए ......जिसे देख कर मेरी पत्नी की आखें खुली की खुली रह गई

2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

दिलचस्प वाकया...फिल्म लाईन में कब क्या हो कोई नहीं कह सकता...फिर क्या हुआ बताएं...आप लम्बी लम्बी पोस्ट क्यूँ नहीं लिखते...मैं तो मिन्नतें करता करता थक सा गया हूँ...
नीरज

अजय कुमार ने कहा…

तो आपका काम बनने लगा धीरे धीरे