शुक्रवार, नवंबर 27, 2009

९१ कोजी होम

नीरज जी .....पहले आप का बहुत -बहुत शुक्रिया ...आप बहुत शौक से मेरी यादों को

पढ़ते हैं ........२५ तारीख को मेरे बारे में ....लिखा हुआ ...आया था । मेरा नाम गुलज़ार साहब

ने दिया था ......वह ....राम लाल ......है ......मुझे लोग मेरे सर नेम से बुलाते हैं ......मिश्रा जी ।

माँ ने जो नाम दिया था ....... वो राम लखन है .....मेरे तीन नाम हैं ..आप को जो अच्छा लगता है ,

उस नाम से बुला सकते हैं .....

धन्यबाद

यादों को जारी करता हूँ .......रात अपने सहायक के साथ -साथ होटल

आया ......रस्ते में एक बात पूछी उसने ......आप मैयरिड हैं ?.......मैं उसकी तरफ़ देखता रहा .....इस दौरान

मैंने दाढ़ी बढ़ा रखी थी .....थोड़े पके हुए बाल भी दाढ़ी में थे ......शायद उसने मेरी उम्र का अंदाजा लगा

लिया था ...मैंने उसे सच कहा ....मैं मैरिड हूँ ......इसके बाद उसने मुझ से कुछ नहीं पूछा ......उसका यह सवाल

मेरे मन में चुभता रहा ......यह सवाल क्यों किया उसने मुझसे ?

सुबह नेपाली वेटर ने उठाया ......साहब सब लोग तैयार हो गयें हैं .....मैं जल्दी उठा

और तैयार हो कर लोकेशन पे जा पहुँचा .....प्रेम चोपड़ा और अनिल के बीच सीन था ......और उसके बाद फाईट

का सीन था ....फाईट मास्टर तैयार था अपना सीन करने के लिए ......मैं डायलाग पोर्शन कर के ,अकरम को

फाईट वजह बता कर ...बाहर आ कर बैठ गया ......यह भी मुझे मालूम था ....यह खूब टाईम लेगा ...

बाहर बैठा था ,तभी मेरे पास निर्माता आ गए ....उन्होंने अपने बड़े भाई से मिलवाया

जिनका नाम ललित जी था ....जिन्होंने ही जापान में आकर सारा व्यापार शुरू किया .....और खाने का होटल खोला

और वह भी हिन्दुस्तानी फ़ूड का .......वक्त के साथ -साथ आज इनके पास जापान में करीब आधा दर्जन होटल हैं

ललित जीका यही कहना था ....भई कुछ एसी फ़िल्म बना दो की हमारा भाई हीरो बन जाय ......मैंने सिर्फ़ इतना ही कहा ,फ़िल्म बनने के बाद ही कुछ ही कहा जा सकता है ....... । ललित जी थोड़ी देर तक रहे फ़िर अपने किसी काम से चले गए .......बैठे -बैठे बोर हो गया था ...उठ कर सडक पे आ गया और टहलते हुए जा रहा था .......तभी देखा सडक और पार्क के किनारे -किनारे कुछ जापनी लोग सडक की साफ़ -सफाई कर रहे थे ...मैं उन्हें देखता रहा

थोड़ा आगे बढ़ा .....पार्क के बगल एक लोहे के सिक्चों से घिरा एक जगह देखा ......जब उसके करीब पहुँचा ,तो क्या

पाया ,उसके अन्दर बहुत सारा समान पड़ा हुआ है ....टी .वीऔर बहुत सारा समान जो देखने में बहुत अच्छे लग रहें हैं ...मैं उन समानों को देखता रहा ......फ़िर कुछ सोचता हुआ वापस लोकेशन पे आ गया .....अभी भी फाईट मास्टर अपना काम कर रहा था ...मैंने उससे पूछा ,कितना और समय लगे गा .....? उसने बताया अभी तो काफ़ी वक्त लगे गा ......फ़िर उसने पूछा .....हीरो को पकड के एक बॉक्स में बंद कर के हिदोस्तान भेजना होगा .........मैंने हाँ में सर

हिलाया ......मैंने उससे कहा जब हीरो को बाक्स में बंद कर के जा रहें होंगे ....तभी रास्ते में एक जापानी लडकी जो

हीरो से प्यार करती है वह बचाएगी ....... ।

शाम हुई ,शूटिंग ख़तम हुई ......यूनिट वापस होटल पहुंचा ,सभी लोग अपने -अपने कमरों में

गए ,मैं उस नेपाली नौकर के पास आया ....और दोपहर को केज में रखे सामानों के बारे में पूछा .....उसने बताया इस जगह को जापान में गुमी के नाम से जाना जाता है ,यहाँ पर लोगों के घर बहुत छोटे -छोटे हैं ...जब किसी को

अपना समान फेकना होता है .....तो वह आदमी रात को वह समान ले कर गुमी में रख आता है ,फ़िर सरकारी आदमी उठा कर ले जाता है ......उसने फ़िर कहा मेरे घर में जो टी .वी है वह यहीं से उठा कर ले कर आया था ....

हमारे यूनिट में कई लोग थे जो ...कई समान उठा कर ले आए थे ...और हिन्दुस्तान ले कर आए ........

जापान में गुंडा -गर्दी बहुत आर्गनाइज तौर पे होते है ....उनका अपना एक ड्रेस कोड है



1 टिप्पणी:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

गुमी की खूब बात बताई आपने..मैंने भी जापान में अच्छा अच्छा सामान गुमी में पड़ा देखा है जिसे हम भारतीय शायद कभी फेंकने की सोच भी नहीं सकते...चाहे घर में जगह हो न हो...ये ही तो जापानी और भारतीय में फर्क है...
आपके संस्मरण बहुत रोचक होते हैं...मेरी कह्यल से इस पर एक किताब छपी जा सकती है...फ़िल्मी की दुनिया की अन्दर की ख्जबर जिसका हम जैसे दर्शकों को कुछ पता नहीं होता...आप लिखते रहें...
नीरज