बुधवार, नवंबर 18, 2009

९१ कोजी होम

बीकानेर के होटल हम सभी लोगो ने नास्ता किया ....मेरी दाढ़ी बढ़ चुकी थी ,पास ही के ही एक नाई की

दूकान में गया ....यहीं बैठा सोचता रहा ...कोई दस वर्ष पहले ....मीरा फ़िल्म की शूटिंग करने इसी शहर में आया था । ड्राइवर ने भी नास्ता किया ...और हम चल दिए जैसलमेर की वोर ......धीरे -धीरे बीकानेर शहर से दूर निकल गए .....अब धीरे -धीरे रेगिस्तान शुरू हो गया ...ठण्ड का मौसम था ...इस लिए सब अच्छा लग रहा था ...मैंने पहली बार रेगिस्तान इतने करीब से देखा था ......करीब बारह बज चुका था ....रास्ते में कहीं कोई दूकान या होटल

नही मिला ....ड्राईवर को भूख लग गई थी .....हम दूकान खोजते चले जा रहे थे ...हम तीनों लोगों ...पहली बार इस रस्ते पे जा रहे थे ....आख़िर एक जगह पर कुछ ट्रक खड़े मिले .....वहीं हम भी रुक गए ..पास ही एक झोपडी थी

जिसमें बैठे कुछ लोग खाना खा रहे थे ...हम भी जा कर बैठ गए ....मैंने पूछा खाने में क्या मिलेगा ......रोटी दाल

दुकान दार ने जवाब दिया .....और कहा कितनी रोटी खायेंगे वह भी बता दीजिये ......मैं उसकी तरफ़ देखने लगा

........साहब बाजरे की रोटी है ,जितनी कहेंगें उतनी ही बनाऊंगा ......हम ने छे रोटी बोल दी .....दस मिनट में उसने

हम तीनों को एक एक रोटी दी ......वह रोटी इतनी मोटी थी ...मैं समझ गया एक से ज्यादा मैं नहीं खा सकता ...

रोटी मोटी और खूब बड़ी थी ...मूंग की दाल थी .....दस रूपये में हम तीनों ने खा लिया .....शाम होते -होते हम

जैसलमेर पहुंच गए ......पहले यह खोजा गुलज़ार साहब कहाँ ठहरे हैं .....यह पता लग गया .....फ़िर मैंने वहीं

एक और होटल देखा ....जहाँ मैंने अपना और ड्राइवर के रहने का इंतजाम किया ....



रात को करीब दस बजे गुलज़ार साहब से मुलाक़ात की ......और उनको बताया कोई निर्माता

राम पुर के हैं जिन्होंने हम पर केश किया है .....की उनका सिरिअल दूरदर्शन पे पहले पास हुआ है ....इसलिए

दूरदर्शन को ...बनाने का मौक़ा पहले उन्हें मिलना चाहिये, एसा वो लोग कह रहें है ....जब तक अदालत से हमें किलिरेंश नही मिलता तब तक टेलीकास्ट ग़ालिब नही हो सकता .......मैंने वह कागज दिखाया .......उन्होंने उसे पढ़ा ....और साइन किया

और दुसरे दिन नोटरी करनी थी ......मैं अपने कमरे में आ गया ...खाना खाया ..कब आँख लग गयी पता ही नही

चला .......सुबह उठ कर नोटरी कराई ........और उस लोकेशन पे पहुँचा जहाँ गुलज़ार साहब शूटिंग कर रहे थे



रेत की पहाड़ी थी ....हर तरफ़ रेत ही रेत थी .....लेकिन फ़िल्म का वो गीत फिल्माया जा रहा था

जिसके बोल थे ........मैं एक सदी से बैठी हूँ

इस राह से कोई गुजरा नही

कुछ चाँद के गाड़ी तो गुज़रे थे

पर चाँद से कोई उतरा नही

गाना सुनने के बाद लगा मैं फ़िर से गुलज़ार साहब का सहायक बन जाऊँ ....पुरानी यादें फ़िर से ताजा हो गई ,गाड़ी चली जा रही थी ....मैं उन दिनों में खोया था ....जब गुलज़ार साहब का सहायक था ....और उनके साथ
फ़िल्में करता था । पूरा दिन चलते रहे ...पूरी रात चलते रहे ...सुबह दिल्ली पहुँचा .....कोर्ट गया पेपर वकील को दिया .......घर पहुँचा ...बच्चों से मिला ....दुसरे दिन राजधानी ट्रेन से मुम्बई गया ......

मुम्बई पहुँचा ,विकास मोहन से मिला ,,,,,और किस्सा शांती का ......सीरियल पे काम करना शुरू किया .....तीन महीने तेरह एपिसोड की स्क्रिप्ट लिखी ........और शूटिंग शुरू की इसके मुख्य मुख्य कलाकार थे
अर्चना जोगलेकर ,अश्विनी भावे ,गिरजा शंकर ,राजा बुन्देला ,संतोष गुप्ता ,और बहुत से एक्टर थे ,जो इस वक्त याद
आ नहीं रहें है ....कालेज की कहानी थी ..........यह वह दौर था जब तेरह एपिसोड मिलना बड़ी बात होती थी









कोई टिप्पणी नहीं: