मंगलवार, दिसंबर 08, 2009

अपने शहर जाने को सिर्फ़ दो दिन ही बाकी थे , मैं सोच रहा था ...कुछ वह देख कर जाऊं यहाँ से ,जो अपने लिए बिल्कुल नया हो ........
......सुबह उठ कर शूटिंग के लिए चल दिए .......रास्ते में फाईट मास्टर मुझ से मिला और कहने लगा ....हम लोगों को अभी तक ,हमारे काम के पैसे नहीं मिले .....एक बार हम लोग यहाँ से चल
दिए, फ़िर यह निर्माता हमें ,पैसे नहीं देगा .....मैंने कहा ठीक है, शाम को बात करते हैं .....हमलोगों ने शूटिंग शुरू की ,सीन कुछ इस तरह का था ....जापानी बदमाश, हमारे हीरो को मारना चाहते हैं ....शहर के बीचो बीच हीरो भाग रहा है ....और उस इलाके में आ जाता है .....जहाँ वेश्या रहती हैं ...और यहीं एक जापानी वेश्या , हमारे हीरो को बचाती है .....
शाम होते -होते हम लोगो को उस इलाके में शूट करना था ......जहाँ यह अपना धंदा
करती हैं .....इस इलाके में शूट करना बड़ा ही मुश्किल था .....मैं उस इलाके के बदमाश से मिला साथ में
मेरा जापानी सहायक भी था .....एक दूबला -पतला जापानी ....जो उस इलाके को देखता था ...उसने
कहा सिर्फ़ एक ख़ास जगह पे ही हम लोग शूट कर सकते हैं .....हम से पैसे भी नहीं लिए .......हम सभी लोग उस जगह पहुंचे .......

सडक की एक खाश गली .....बहुत पतली ....इतनी पतली की उस गली में सिर्फ़ एक ही आदमी ही जा सकता है .....हम लोग ..एक -एक कर के उस जगह पे पहुंचे ......मेरे सहायक ने वहाँ बात
की ...और हम लोगो ने शूट शुरू किया .....हर कमरा बहुत खूबसूरत ढंग से सजा हुआ .....कमरों कीदीवारे बिल्कुल प्लेन ..... कोई चित्र नहीं था ...कमरे में हर चीज उपल्ध थी ...पर कुछ भी पाने के लिए आप को पेमेंट करना पड़ेगा टी वी भी है, उस पर देखने के लिए फ़िल्म भी है पर पैसा देना पडेगा ....घंटों का हिसाब किताब था............
टाइम बढ़ाने के लिए ...एक मशीन लगी है उसमे पैसे डालिए और समय बढ़ जाएगा ....हम लोगों के व्योहार से वहाँ के लोग ... बहुत खुश थे ..... करीब बीस औरते थी ...अलग -अलग उम्र की ...

रात करीब दस बजे हम ने शूटिंग ख़तम की .....मैं तो जापानी सहायक के साथ
निकल आया ...हम दोनों इस इलाके को घूमते हुए ..इसे देखते रहे ....इस जगह में एक खाश
बात थी ,,सिर्फ़ जापानी आदमिओं को ही इज्जात थी वहाँ जाने की ॥
..............................भूख लगने लगी थी ,मैंने सातो से कहा ...मुझे लोकल फ़ूड खाना है ...वह मुझे
एक होटल में ले गया ....उसने अपनी जबान में कुछ आर्डर किया ....एक औरत जापानी भेष -भूषा में आयी और हमारे सामने एक छोटे ग्लास में सफेद रंग का तरल पदार्थ रखा ...सातो चाय की तरह पीने लगा ....मैंने उससे पूछा ,क्या है ? ......जौ का पानी ..!..मैं कुछ समझा नहीं ...खाने से पहले जौ का पानी
...मैं भी पीने लगा ...उसके बाद एक प्लेट में थोड़ा सा चावल गोल सा लड्डू बना कर और उसके चारो तरफ़ पानी की काई लगा कर मेरे सामने रखा ....काई की बात मेरे सहायक ने मुझे बताया ....और कहा यह बनाया जाता है साफ़ पानी से .....खाने के लिए लकड़ी की डंडी रखी .... सातो ने मुझे बताया....
इससे कैसे खाना होगा ....उसके बाद वाउल में फिस सोरबे के साथ... लेडी मैं रख गयी ,,जिसमें कोई मसाला नहीं ...सफेद -सफेद मछली देख कर मन भिनक गया फ़िर ....मैंने कैसे खाया ....एक -एक
चावल उठा कर ....एक बात और यहाँ बताना चाहता हूँ ....जापानी लोग बहुत कम खाते हैं .....इन लोगों
का सोचना है ....की खाने की चीजों पे किसी पर , यह लोग डिपेंडेंट नहीं रहना नहीं चाहते हैं .....चावल की खेती यह लोग अपने देश में ही करते हैं ....और फिश समुन्द्र से लेते हैं ....दुसरे महायुद्ध के बाद से यहाँ के लोगो ने .....अपनी एक निति बना रखी कम खाने की ...जिससे ...शायद यह लोग कम खाते हैं
वैसे पूरे संसार से कुछ न कुछ मांगते हैं ....कनाडा से दूध ,आस्ट्रेलिया से प्याज और बहुत सारी चीजे शराब योरप से कच्चा माल हिन्दुस्तान से ....
रात को दो बजे अपनी रहने की जगह पे पहुँचा ........

जारी ......

1 टिप्पणी:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आप की जापान यात्रा बहुत ही रोचक लगी...अगली कड़ी का इंतज़ार बेताबी से है...
नीरज