बुधवार, दिसंबर 23, 2009

९१ कोजी होम

दोपहर का वक्त था ,मैं घर जा रहा था । जुहू के रास्ते मुझे अपने घर जाना पड़ता है ...जुहू बीच से, जैसे आगे बढ़ा
था की... अपने दोस्त शलीम आरिफ साहब को देख कर रुक गया .......हम लोग ,काम -धंदे की बात करने लगे ,मैंने अपनी बीती सुनाई ...कैसे जापान वाली फिल्म छूटी.....उस समय शलीम साहब गुलज़ार साहब के मुख्य सहायक थे ....मेरा आना -जाना गुलज़ार साहब के यहाँ था । हम मेंदोस्ती भी अच्छी -खासी थी ,हम दोनों एक ही शहर के
जो थे .......अचानक उन्होंने मुझ से कहा ......यार लिबास फिल्म तो राज बब्बर जी थे न ? मैंने हाँ में जवाब दिया
....फिर कहने लगे ...सहारा कम्पनी उनके आफिस से चैनेल का आफिस खोल रही है .....उनकों लोगो की जरूरत है
...तुम क्यों नहीं मिलते राज जी से तुम्हे तो अच्छी तरह जानते होंगे ? ......काम की जरूरत तो थी ....इससे पहले
मैंने किस्सा शांति का .......का सीरियल बना भी चुका था ....मिर्जा ग़ालिब का......इ पी भी रह चुका था ।
कुछ सोच के मैं राज जी के आफिस में पहुंचा .....वहाँ कुकू से मुलाक़ात हुई जो राज जी के
छोटे भाई थे .....कुकू लिबास फिल्म में ..नया -नया फिल्म का काम सीखने के लिहाज से लगा था ....मेरी बहुत
इज्जत करता था ...मुझे देखते खुश हुआ .....आदतन ..हंसने की आदत ...खूब खुल के हंसा ...आइये -आइये काम चाहिए ......मुझ से कुछ बात कर के सुमित राय जी से मिलाया ......और मुझे सहारा पे पक्की नौकरी मिल गयी
और मैं बाहर का भी काम कर सकता था ........आज दोपहर का खाना मिस हुआ .....अब मेरे पास दो काम था ...
नौकरी की बात मेरी समझ में नहीं आ रही थी ......आज तक नौकरी कभी नहीं की थी ....फिल्म डिवीजन में उस वक्त नौकरी नहीं की ......आज !........कल की बात सोच के समझ आती है ......नौकरी सभी को करनी पड़ेगी
फिल्मों का बजट इतना बड़ा होगा की ...आम निर्माता के लिए ...फिल्म बनाना ..एक सपना होगा ....उस समय
एक फिल्म की लागत पांच करोड़ या कुछ ज्यादा .......थी
जापान वाली फिल्म ."एय मेरी बे - खुदी "रिलीज हुई बहुत बड़े -बड़े पोस्टर लगे जुहू में जब भी मैं
उन्हें देखता ...सीने में आग लग जाती ...पर क्या करता ....खुद ही पैरों पे कुलाड्ही जो मारी थी ........कैसे भी कर
फिल्म पूरी कर दो ....रिलीज करा डालो .....तुम्हारे नाम का पोस्टर जो लग जाएगा वही तुम्हारी कमाई हो गी
........इतना त्याग मुझ में नहीं था ........
जहां तुम ले चलो "......यह वह फिल्म थी जिसका मैं सह निर्देशक था ......हीरो थे जिमी शेर गिल थे .निर्मल पाण्डेय और सुनाली कुलकर्णी थी .....गुलज़ार साहब के गाने और संगीत कार विशाल भरतद्वाज जी थे
सभी नामचीन लोग थे ...........
जारी ..........






कोई टिप्पणी नहीं: