सोमवार, जनवरी 04, 2010

९१ कोजी होम

नया साल आये तीन दिन बीत चुके हैं .......कुछ नहीं लिखा ....तीन दिन यह सोचते बीत गया.........

मैंने क्या किया इस साल ......लगा कुछ नहीं किया ...कुछ भी ऐसा नहीं जिसे याद किया जा सके ...

यादों को जो लिख रहा हूँ .....जो मैंने देखा -सुना ,इसमें कुछ भी लाट-लपेट नहीं ........सन ७० की बात

है ....गुलज़ार साहब ने जो बताया था ....वही ही लिख रहा हूँ ........इस दौर में गुलज़ार साहब के पास हिल मैंन

कार थी ....जैसी मारुती ८०० होती है वैसी ही कुछ थी ....जिसे गुलज़ार साहब खुद ही चलाते थे ....एक दिन

की बात है ....वह कार चलाते हुए जा रहे थे ...यह घटना पाली हिल की है ...जब वह दलीप साहब के बंगले

के सामने से गुज़र रहे थे ...तभी उन्होंने देखा सडक के बीचो -बीच में एक कुत्ता बैठा सो रहा था ...गुलज़ार साहब

ने दो तीन बार हार्न बजाया ....कुत्ते ने सर उठा कर इनकी तरफ देखा ...फिर कुछ सोच के वहीं सो गया ...उस पर

इनके हार्न बजाने का असर ही नहीं हुआ ....

गुलज़ार साहब किनारे हो कर चले गये .....उनका रोज का यही ही रास्ता था ...,

दुसरे दिन ,गुलज़ार साहब फिर वहीं से गुज़रे ,वह कुत्ता कल की तरह बीच सडक में सो रहा था ...गुलज़ार साहब

उस कुत्ते के करीब तक गये ....गाड़ी खडी की और हार्न बजाया ,कुत्ते ने उठ कर इन्हें देखा ..और सडक के किनारे

जा के सो गया .....फिर गुलज़ार साहब ने उसकी तरफ देख कर कहा ....यहीं सोया करो ....बीच में तुम्हारी जान

का खतरा है ...."..फिर गुलज़ार साहब ने जो बताया वह कमाल का था .".....,दुसरे दिन से वह कुत्ता वहीं किनारे सोता

और जब गुलज़ार साहब वहां से गुजरते ,वह कुत्ता वहीं किनारे सोता हुआ मिलता ....गुलज़ार साहब हार्न बजाते

वह इनकी तरफ देखता यह भी उसकी तरफ देखते ....मुझे लगता है दोनों में गुड मार्निग होता ...फिर अपनी

अपनी जिन्दगी में दोनों मशगुल हो जाते .......गुलज़ार साहब अनुशासन प्रीय हैं ...शायद उसे इनके कहने पे ...

इसे समझ आ गया हो .......सोने की जगह कहाँ होती है ....

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