शुक्रवार, जनवरी 15, 2010

९१ कोजी होम

गुलज़ार साहब की मेहमान -नवाजी ......

.......बहुत अच्छे ढंग से करते हैं ,हिन्दू धर्म में कहा गया है ....भगवान् का

स्वारूप होते हैं , मेहमान । जो भी उनसे मिलने आता है ,उसके खाने -पीने का खुद ही ख्याल रखते

हैं । और अच्छी से अच्छी चीज खिलाने की कोशिश करते हैं । और जब मेहमान विदा लेता है तो ,

उसे खुद ही बंगले के गेट तक छोड़ने आते हैं । जब वह चला जाता है ,तब वह घर में वापस आते हैं ।

आप सोचते होंगे ,यह तो हर इंसान करता है अपने मेहमान से ,इसमें कौन सी बड़ी बात

है । जी नहीं ....गुलज़ार साहब ,हर किसी से इसी तरह पेश आते हैं ,चाहे वो एक दिन पहले मिला हो

या तीस साल पहले से पहचान हो ......मैं तो एक अदना सा उनका सहायक हूँ .....पर जब भी, मैं भी

मिलने जाता हूँ ....मुझे भी घर के दरवाज़े तक छोड़ने आते हैं .... ।

खिलाने -पिलाने के बहुत शौकीन हैं ,मेहमान को ,वह सब कुछ खिलाना चाहते हैं जो बहुत

अच्छा है । खाने की टेबल पे ,मेहमान को हर चीज ,जो खाने की है ,उसके बारे में बताते हैं॥


हाथ से खाना ज्यादा पसंद करते हैं .....और बहुत मन से खाते हैं ..खाने में किसी तरह का

नुक्श नहीं निकालते ...उनकी डायनिंग टेबल पर रंग -रंग के अंचार रहते हैं ..आप को वह बतायंगे

यह अचार दिल्ली का है ....और यह बटेर का आचार है ,कराची से आया है ......और यह लुधियाना का

है ......आप को कौन सा खाना है ?यह भी वह बताएगें ........

एक बात और बता दूँ , आप कब उनसे मिलने जा रहें है ,वक्त क्या है । सुबह के वक्त नाश्ता

करना पड़े गा ,शाम को नाश्ता और रात को साथ में डिनर करना पड़े गा ।

एक बार मैंने उनसे पूछा ,बोस्की का मतलब क्या है ? तो उन्हों ने बताया ,यह एक खाश

किस्म का सिल्क है ,जो बहुत साल पहले रूस से आता था । उनकी बेटी का उप नाम भी बोस्की ही है

जब यह सब मुझे बता रहे थे ....कुछ सोच कर हंसने लगे ,और फिर खुद ही कहने लगे .....बोस्की की

जगह अगर लडका होता , तो उसका नाम लटठा रखता मैं ...और फिर से हंसने लगे ....

[लटठा सफेद किश्म का एक कपड़ा होता है ,सस्ता होता है । दिल्ली में लोग रजाई ,लिहाफ का

खोल बनाते हैं ......

1 टिप्पणी:

ओम आर्य ने कहा…

भंगार साब,
आप हमेशा से दिल की बात लिखते रहे हैं...दिल से गुलज़ार साब की बात...
मेरे पास उनकी बात नहीं है...पर दिल से आज उनके बारे में अपनी बात जरूर कह देने का मन है.

जैसे जैसे मैं बड़ा हो रहा था...कुछ गीतों से रूबरू होता जा रहा था और कुछ गीत मुझे बेहद पसंद होते चले गए...उस समय मुझे ये भी पता नहीं था कि गीत में कोई गीतकार होता है, कोई संगीतकार होता है, गाता कोई और है वगैरह..वगैरह...
बीतते समय के साथ जो गाने मुझे पसंद होते गए थे...एक दिन मैंने जाना कि वे सारे गीत गुलज़ार साब के लिखे हैं...तो मैं उस दिन से गुलज़ार साब का 'फैन' हो गया. गुलज़ार साब के 'फैन' आज लाखों में हैं...पर आज भी मुझे लगता है कि मेरी कहानी जुदा है...फिर मैंने बचपने में कई ख़त भी लिखे उन्हें... फिर मैंने सोंचा कि पता नहीं मेरे ख़त उन तक पहुँचते भी हैं या नहीं सो एक बार मैंने ख़त के साथ 'एक्नोलेजमेंट' भी भेजा था तब उनका हस्ताक्षरित कार्ड लौट कर आया था और मुझे लगा था उनका जबाब आया है.

आज जब आपने लिखा कि वो चाहे कोई भी हो वो गेट तक छोड़ने आते हैं तो मुझे लगा कि बिल्कुल सही कहा आपने..वो मेरे ख़त के साथ लगा 'एक्नोलेजमेंट' भी तो दरवाजे तक छोड़ने आये थे....